माना जा रहा है कि लाॅकडाउन खत्म होने के बाद इन पदों पर नियुक्तियां हो जाएंगी। विश्वविद्यालय चाह रहा है कि इसके अलावा 350 रिक्त पदों पर भी वैज्ञानिकों की नियुक्तियां हो जाएं, ताकि अनुसंधान कार्यों में तेजी आ सके। वर्तमान में गोविंद वल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में 475 वैज्ञानिक कार्यरत हैं। विश्वविद्यालय के मुताबिक, नए अनुसंधान के लिए कृषि अनुसंधान केंद्र, केंद्रीय कृषि मंत्रालय और उत्तराखंड सरकार की ओर से काफी फंडिंग की जाती है। लेकिन कई तरह की शोध परियोजनाएं वैज्ञानिकों के नहीं होने से पिछले सात साल से अटकी पड़ी हैं। विश्वविद्यालय की ओर से रिक्त पदों को भरने के लिए कई बार पत्राचार भी किया गया है। लेकिन बजट के अभाव में वैज्ञानिकों की नियुक्ति को हरी झंडी नहीं मिल पा रही है।
साल 1960 में स्थापित गोविंद वल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय अब तक कृषि की 283 प्रजातियां विकसित कर चुका है जिसमें गेहूं, चावल, दलहनी फसलें, सोयाबीन, सब्जी, फल, मोटे अनाज और पशुओं की नई प्रजातियां शामिल हैं।
‘नए-नए शोध के लिए वैज्ञानिक और तकनीकी स्टाॅफ की सख्त जरूरत है। मात्र 25 वैज्ञानिकों की नियुक्ति की मंजूरी मिली है लेकिन लाॅकडाउन की वजह से यह नियुक्तियां भी नहीं हो पाई हैं। विश्वविद्यालय में 350 से ज्यादा वैज्ञानिकों के पद रिक्त पड़े हुए हैं जिसे भरने की सख्त जरूरत है।’
-डा. अनिल शर्मा, निदेशक प्रसार, गोविंद वल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय