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यादों में ‘कैलाश जोशी’ : जब राजमाता सिंधिया ने चुनाव के लिए दिए थे साढ़े तीन हजार रुपए और एक गाड़ी

दुनिया से रूखसत हुए राजनीति के संत, छोड़ गए अनगिनत किस्से, अमिट स्मृतियां
सफेद कुर्ते और धोती के बीच रहा सियासत का श्वेत चेहरा
स्वाभिमान और सिद्धांत की राजनीति के रहे पर्याय

देवासNov 25, 2019 / 05:14 pm

हुसैन अली

यादों में ‘कैलाश जोशी’ : जब राजमाता सिंधिया ने चुनाव के लिए दिए थे साढ़े तीन हजार रुपए और एक गाड़ी

यादों में ‘कैलाश जोशी’ : जब राजमाता सिंधिया ने चुनाव के लिए दिए थे साढ़े तीन हजार रुपए और एक गाड़ी

चंद्रप्रकाश शर्मा @ देवास. राजनीति के संत दुनिया से रुखसत हो गए। राजनीति से पहले ही दूर हो गए थे, अब देह भी त्याग दी। छोड़ गए अनगिनत किस्से। अमिट स्मृतियां और भरापूरा अतीत। शारीरिक कद छोटा था परंतु राजनीतिक कद इतना ऊंचा जिस तक कोई पहुंच नहीं सका। सफेद कुर्ते और धोती के बीच रौबदार लेकिन सरल-सहज व्यक्तित्व। अपने नाम के अनुरूप ही सिद्धांतों के सर्वोच्च शिखर पर काबिज शख्सियत। उन्होंने सदा के लिए आंखें क्या मूंदी, हजारों आंखें नम हो गई। दिल पसीज गए और यही आवाज आई कि श्वेत आत्मा, श्वेत वस्त्र, श्वेत केश या वेश…कहां मिले इस लोक में ऐसा व्यक्ति विशेष…।
दरअसल भाजपा के कद्दावर नेता और मप्र के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री कैलाश जोशी का रविवार को निधन हो गया। वे लंबे समय से अस्वस्थ थे। बीमारी के चलते राजनीति से लंबे समय से दूर थे। रविवार को वे अनंत की यात्रा पर चले गए। सबको छोडक़र। उनके जीवन से लेकर देह त्यागने तक ऐसे अनेक किस्से रहे जो उनके विशाल व्यक्तित्व को बयां करते हैं।
यादों में ‘कैलाश जोशी’ : जब राजमाता सिंधिया ने चुनाव के लिए दिए थे साढ़े तीन हजार रुपए और एक गाड़ी
चापड़ा आईं थी राजमाता विजयाराजे सिंधिया

बरखेड़ा (बागली) के इंद्रजीत सिंह बरखेड़ा ने बताया कि मेरी उम्र करीब 12 साल थी जब बड़े साहब पहला चुनाव लड़े। 1952 में बागली सीट से मेरे पिता तेजसिंह बरखेड़ा चुनाव लडक़र विधायक बने थे। मेरे पिताजी ने ही बड़े साहब के लिए सीट छोड़ी थी। हुआ यूं था कि 1962 के चुनाव से पहले राजमाता विजयाराजे सिंधिया चापड़ा रेस्ट हाउस आईं थीं। उन्होंंने पिताजी को बुलाया था। पिताजी बड़े साहब को लेकर गए। राजमाता से कहा कि मेरी जमीन बिक गई है। मैं अब चुनाव नहीं लड़ सकता, लेकिन योग्य चेहरा लाया हूं। तब बड़े साहब की ओर इशारा किया। राजमाता ने कहा कि ये छोटे कद का लडक़ा कांग्रेस से कैसे मुकाबला करेगा। तब पिताजी ने कहा कि आप चिंता मत करो। इसके बाद बड़े साहब को टिकट मिला। बाद में बड़े साहब को राजमाता ने ग्वालियर बुलाया। मेरे पिताजी के साथ वे ग्वालियर गए। वहां राजमाता ने उन्हें एक गाड़ी दी और साढ़े तीन हजार रुपए दिए। बड़े साहब डेहरिया साहू में संघ की शाखा लगाते थे। 1967 में हमारे यहां रोड बनने वाली थी तो बड़े साहब हाटपीपल्या से बरखेड़ा तक आठ किमी पैदल चलकर आए। पैरों में स्लीपर पहनी थी। रोड का भूमिपूजन किया। मिट्टी खोदी। जब सीएम बनने के बाद मेरे घर आए तो पिताजी के साथ अलग कमरे में बैठे। उन्होंने कुछ खाया नहीं था। पिताजी से कहा कि ठाकुर साहब मुझे भूख लगी है, गाय का दूध पीना है। उनके लिए दूध लेकर आए। सीएम ड्यूटी में लगे सभी अधिकारी हैरान हुए कि कितने सहज सीएम है जो दूध मांगकर पी रहे हैं।
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अजेय योद्धा का 1929 से 2019 तक का सफर

हाटपीपल्या के एक साधारण परिवार में 14 जुलाई 1929 को उमाशंकर जोशी व रंभाबाई जोशी के घर जन्मे कैलाश जोशी ने जनसंघ के समय से संगठन की राह में अपने आपको समर्पित किया। १९६२ में पहली बार बागली विधानसभा से विधायक बने। वे लगातार आठ बार विधायक चुने गए। बागली को भाजपा का गढ़ बनाया। 1998 में कांग्रेस के श्याम होलानी ने उन्हें पराजित किया। 1972 से 77 तक मध्यप्रदेश विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष रहे। 1977 में पहली बार गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने। जून 1977 से जनवरी 1978 तक मप्र के मुख्यमंत्री रहे। 1978 से 80 तक प्रदेश सरकार में उद्योग मंत्री रहे। 1985 से 90 तक विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे। 1990 से 92 तक मंत्री बने। 2000 से 2004 तक राज्यसभा सदस्य रहे। 2000 से 2002 तक कृषि समिति सदस्य, 2001 से 2002 तक ग्रामीण विकास विभाग में मंत्री, 2002 से 2004 तक आर्थिक समिति, सामान्य उद्देश्य समिति के अध्यक्ष रहे। 2004 से 2014 तक लोकसभा सदस्य रहे।
यादों में ‘कैलाश जोशी’ : जब राजमाता सिंधिया ने चुनाव के लिए दिए थे साढ़े तीन हजार रुपए और एक गाड़ी
दो माह पहले ही हुआ था पत्नी का निधन

स्व. कैलाश जोशी ने जून 1950 को तारादेवी से विवाह किया। दो माह पहले सितंबर माह में तारादेवी का निधन हुआ। पत्नी के निधन के बाद अस्वस्थ चल रहे जोशी और अकेले हो गए और अतीत के आंगन में अर्धांगिनी के साथ बिताए सुनहरे पलों को याद करते रहे। आखिरकार 24 नवंबर को कैलाश जोशी भी दुनिया छोड़ गए। उनके तीन पुत्र हैं। प्रकाश जोशी, दीपक जोशी और योगेश जोशी। दीपक जोशी सक्रिय राजनीति में है और मप्र की भाजपा सरकार में मंत्री रह चुके हैं। स्व. जोशी का एक भाई और दो बहन है। हाटपीपल्या के जोशी मोहल्ले में उनका निवास है।
यादों में ‘कैलाश जोशी’ : जब राजमाता सिंधिया ने चुनाव के लिए दिए थे साढ़े तीन हजार रुपए और एक गाड़ी
दीपकजी से कहा था-उधर जाओ तो इधर मुंह मत करना..

भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष गोपीकृष्ण व्यास ने बताया कि मैं आज जो कुछ हूं वह बड़े साहब (कैलाश जोशी) की बदौलत हूं। पहली बार वे हाटपीपल्या नगर पालिका अध्यक्ष बने थे। वे कर्म प्रधान थे। कर्म ही पूजा है उनका ध्येय वाक्य था। उस समय हाटपीपल्या और बागली एक ही थे। वे बागली से चुनाव लड़ते थे। हम लोग कन्नौद-खातेगांव विधानसभा के सतवास में थे। वर्ष 1967-68 में पं. दीनदयाल उपाध्याय हाटपीपल्या आए थे। मैं कॉलेज में था। उनको सुनने गया था। वहीं पर बड़े साहब से मुलाकात हुई और तब से जो साथ पकड़ा तो अब तक जारी रहा। अटलजी का बड़े साहब पर बड़ा स्नेह था। उनका बहुत सान्निध्य मिला। अटलजी की मौजूदगी में ही हमने बागली विधानसभा में बड़े साहब को जीप दी थी। बड़े साहब की खास बात यह थी कि वे झूठे आश्वासन नहीं देते थे। जो कहते थे वही करते थे। बागली तो मानो उनका घर था। जब वे बागली के गांवों में जाते थे तो लोग कहते थे जोशी बाबा आए हैं। पलक-पावड़े बिछाकर स्वागत करते थे। जुलाई में जब बड़े साहब का जन्मदिन था तब उनसे मुलाकात हुई थी। पास में बैठाया और पूछा कि व्यासजी क्या हाल है। पहाड़सिंह (वर्तमान में बागली विधायक) कैसा काम कर रहा है। राजनीति की कई बात की। उनके दुर्गा नामक कर्मचारी को कहते थे कि दुर्गा चाय पिलाओ सबको। कई बार वे खुद पानी लेने जाते तो भौजी (तारा भाभी) कहती थी कि मत जाओ आप। बीमार हो। वे सख्त मिजाज भी थे। काम में गलती होती थी तो डांटते थे। एक बार दीपक जोशी को भी डांट दिया था। उस समय जनशक्ति पार्टी बनी थी। दीपक जोशी ने उमाजी के साथ जाने की बात कही तो बड़े साहब बोले कि उधर जाओ तो फिर इधर मुंह मत करना। उधर ही रहना हमेशा। फिर दीपकजी समझ गए और नहीं गए। मेरे लिए सतवास के कई लोग उनके पास गए थे और कहा कि व्यासजी को कुछ तो दे दो। मुझसे पूछा कि क्या चाहते हैं ये लोग। मैंने कहा इनसे ही पूछ लो। इसके बाद मुझे भाजपा जिलाध्यक्ष बना दिया। उनमें पद लोलुपता बिल्कुल नहीं थी। जब राज्यपाल की चर्चा चली और पटवाजी की नाराजगी की बात सामने आई तो राज्यपाल बनने से मना कर दिया। वे हर चुनाव प्रचार की शुरुआत बागली विधानसभा के ओखलेश्वर हनुमान मंदिर से करते थे।
रास्ता भटक गए, अलाव तापकर काटी रात

स्व. जोशी के करीबी रहे पूर्व जिलाध्यक्ष महेश दुबे ने कहा कि वे ऐसे विधायक थे जो कभी भीड़ लेकर नहीं चलते थे। गांव जाते तो बजाय माइक पर सभा करने के सार्वजनिक चौपाल लगाते थे। वहां नाम से लोगों को पुकारते और चर्चा करते। गांव की समस्या को नोट करते थे। कार्यकर्ताओं को पत्र लिखकर कार्यक्रम की सूचना देते थे। गाड़ी खुद चलाते थे। ड्रायवर नहीं रखते थे। गाड़ी खराब होती तो खुद ही सुधारने बैठ जाते। एक बार तो ठंड के दिनों में हम जा रहे थे। रास्ता भटक गए। आदिवासी गांव सिंगलादे में रूके। अलाव जलाकर रात काटी। वहीं सोए। सुबह गांव में बिना दूध की काली चाय पीकर आगे बढ़े। उनके साथ इतनी स्मृतियां हैं कि शब्द कम पड़ जाए। उनके निधन से मैं स्तब्ध हूं।

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