करवा चौथ के दिन प्रमुख रूप से चंद्रमा, भगवान शिव और माता पार्वती व भगवान गणेश की पूजा की जाती है। मान्यता है कि करवा चौथ का व्रत करने से 100 व्रत के बराबर फल मिलता है और पति को लंबी आयु मिलती है। ऐसे में सवाल उठता है कि करवा चौथ के दिन महिलाएं चंद्र दर्शन के बाद ही क्यों व्रत खोलती हैं?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जिस दिन भगवान शिव गणेश जी की सिर धड़ से अलग किया था, उस दिन उनका सिर सीधे चंद्रलोक चला गया था। मान्यता है कि आज भी उनका सिर चंद्रलोक में ही मौजूद है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भगवान गणेश प्रथम पूज्य हैं। यही कारण है कि इस दिन चंद्रमा, शिव-पार्वती के साथ-साथ भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भगवान शिव के आशीर्वाद से माता पार्वती को अखंड सौभाग्यवती का वरदान प्राप्त है। यही कारण करवा चौथ के महिलाएं अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मांगने के लिए उपवास रखती हैं।
इस दिन महिलाएं चंद्रमा की पूजा इसलिए करती हैं क्योंकि चंद्रमा के पास रूप, शीतलता, प्रेम और प्रसिद्धि है। चंद्रमा को लंबी आयु का वरदान मिला हुआ है। दरअसल, चंद्रमा शिव जी की जटा का गहना है, इसलिए यह दीर्घायु का भी प्रतीक है। ऐसे में करवा चौथ के दिन महिलाएं चंद्रमा की पूजा कर यह सभी गुण अपने पति में समाहित करने की प्रार्थना करती हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, अगर कुंडली में चंद्रमा सही स्थान पर ना हो तो मानसिक और शारीरिक पीड़ा का सामना करना पड़ता है। ऐसे में चंद्रमा की पूजा करने से शांति मिलती है और सेहत अच्छी रहती है। इसके अलावा करवा चौथ के दिन चंद्र दर्शन के बाद व्रत समापन करने से संबंधों में मजबूती आती है।
चांद को छलनी से क्यों देखते हैं? अक्सर हम देखते हैं कि करवा चौथ की शाम व्रती महिलाएं चंद्रमा का दर्शन छलनी से करती हैं। मन में सवाल उठता है कि आखिर ऐसा इस दिन क्यों किया जाता है? पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार भाइयों ने बहन को स्नेहवश भोजन कराने के लिए छल से छलनी की ओट में चांद की जगह दीपक को दिखाकर भोजन करवा दिया। माना जाता है कि ऐसा करने से उसका व्रत भंग हो गया। इसके बाद उसने पूरे साल चतुर्थी का व्रत किया और करवा चौथ के दिन विधिपूर्वक व्रत किया। उसके बाद उसने छलनी लेकर चांद का दर्शन किया, तब जाकर उसे सौभाग्य की प्राप्ति हुई। यही कारण है कि इस व्रती महिलाएं छलनी से चांद की दर्शन करती हैं।