Kedarnath Dham: बद्रीनाथ से पहले करनी चाहिए केदारनाथ की यात्रा, अक्षय तृतीया पर खुलेंगे कपाट, जानिए मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य
Kedarnath Dham चार धाम, पंच केदार और द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक बाबा श्री केदारनाथ धाम के द्वार अक्षय तृतीया पर 10 मई सुबह 7 बजे से भक्तों के लिए खुल जाएंगे। इसके बाद भक्त इनका दर्शन पूजन कर आशीर्वाद पाएंगे। लेकिन केदारनाथ धाम दर्शन के लिए जाने से पहले मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य और रहस्य जरूर जानना चाहिए…
शीतकाल में 6 माह के लिए बंद हो जाते हैं केदारनाथ धाम के कपाट
हर साल सर्दी के मौसम में केदारनाथ क्षेत्र में भारी बर्फबारी, भूस्खलन और यात्रा की कठिनाइयों को देखते हुए उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ मंदिर के कपाट 6 माह के लिए बंद कर दिए जाते हैं। दीपावली के अगले दिन यानी गोवर्धन पूजा के दिन से अक्षय तृतीया पर मंदिर खुलने तक केदारनाथ यात्रा बंद रहती है। इस समय के लिए भगवान के प्रतीकात्मक रूप यानी चल मूर्ति की डोली श्री ओंकारेश्वर मंदिर उखीमठ लाई जाती है। यहीं भगवान सर्दी में भक्तों को दर्शन देते हैं। इस साल भगवान केदारनाथ की पंचमुखी डोली 9 मई 2024 को गुरुवार सुबह 8.30 बजे गौरामाई मंदिर गौरीकुंड से केदारनाथ धाम के लिए प्रस्थान कर गई। अब 10 मई अक्षय तृतीया को केदारनाथ धाम के कपाट ग्रीष्मकाल के लिए खुल जाएंगे। इसके बाद भक्त यहीं से दर्शन करेंगे। आइये जानते हैं केदारनाथ धाम के रोचक तथ्य…
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार श्री बदरीनाथ की यात्रा से पहले भगवान श्री केदारनाथ का पुण्य दर्शन कर लेना चाहिए। मान्यता है कि सतयुग में इसी स्थान पर केदार नाम के एक राजा ने घोर तपस्या की थी, इस कारण से इस क्षेत्र को केदार क्षेत्र के नाम से जाना जाता है और इस क्षेत्र में निवास करने वाले महादेव के इस स्वरूप को केदारनाथ के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा केदार का शाब्दिक अर्थ दलदल होता है और भगवान शिव दल-दल भूमि के अधिपति हैं। इसलिए दलदल (केदार) के नाथ (अधिपति) के नाम से यहां भोलेनाथ को केदारनाथ नाम से जाना जाने लगा।
केदारनाथ की सबसे बड़ी खासियत यहां त्रिकोण के आकार के पत्थर का शिवलिंग होना है। इसे भगवान शिव के बैल रूपी अवतार का पीठ वाला भाग माना जाता है। मान्यता है कि यह स्वयंभू शिवलिंग है जो धरती में से प्रकट हुआ था। इससे महाभारत काल की कहानी जुड़ी हुई है।
इसके अनुसार पांडवों को अपने पापों से मुक्त होने के लिए भगवान शिव के दर्शन करने थे, लेकिन भगवान पांडवों की परीक्षा ले रहे थे और बैल का स्वरूप धारण कर लिया। लेकिन भीम ने उन्हें पहचान लिया और भगवान शिव के बैल रूपी अवतार के पीछे वाले भाग को पकड़ लिया। बाद में भगवान शिव यहां इसी शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए। वहीं बैल के चार अन्य भाग, चार अन्य स्थानों पर प्रकट हुए। इन्हीं पांचों स्थानों को सम्मिलित रूप से पंच केदार के नाम से जाना जाता है।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की एक अन्य कथा
एक अन्य कथा के अनुसार एक समय भगवान विष्णु ने नर और नारायण ऋषि के रूप में अवतार लिया और केदार क्षेत्र में घनघोर तपस्या की। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन दोनों को दर्शन दिए और शिवलिंग के रूप में वास करने लगे।
केदारनाथ मंदिर का निर्माण
बाद में समुंद्र तल से 22,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस जगह पर मंदिर बनवा दिया गया। केदारनाथ मंदिर का निर्माण बड़े-बड़े पत्थरों, चट्टानों, शिलाखंडों से किया गया है। इन शिलाखंडों को आपस में जोड़ने के लिए इंटरलॉकिंग तकनीक को अपनाया गया है, जिसमें कहीं भी सीमेंट इत्यादि का प्रयोग नहीं किया गया है। इतनी अधिक ऊंचाई पर इतने विशाल शिलाखंडों को पहुंचाना और उन्हें एक के ऊपर एक रखकर इंटरलॉकिंग करना हैरान करता है।
भैरवनाथ मंदिरः दर्शन के बिना यात्रा नहीं होती पूरी
केदारनाथ के मुख्य मंदिर से आधा किलोमीटर से भी कम दूरी पर एक मंदिर है, जिसका नाम है श्री भैरवनाथ मंदिर। भैरवनाथ को इस क्षेत्र का क्षेत्रपाल कहा जाता है जिनके द्वारा केदारनाथ मंदिर और इसके आसपास वाले स्थलों की सुरक्षा की जाती है। कोई भी व्यक्ति केदारनाथ की यात्रा पर जाता है तो उसके लिए भैरव मंदिर में दर्शन करना जरूरी होता है, इसके बिना यात्रा पूरी नहीं मानी जाती है।
केदारनाथ मंदिर की अखंड ज्योत
मंदिर का सबसे रोचक तथ्य है यहां जलने वाली अखंड ज्योत। मान्यता है कि जब मंदिर के पुजारी सर्दी में मंदिर के कपाट बंद कर ताला लगाते हैं तो मंदिर में एक दीपक जलता हुआ छोड़ देते हैं। इसके छह माह बाद जब मंदिर के कपाट फिर खोले जाते हैं तब यह दीपक जलता रहता है। मंदिर में पूजा-अर्चना और साफ-सफाई भी दिखती है।
प्राकृतिक आपदा में मंदिर रहा सुरक्षित
वर्ष 2013 में केदारनाथ में भीषण आपदा आई, लेकिन मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। लोग इसको भी चमत्कार मानते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि आपदा के समय बाढ़ के पानी में बहकर एक विशाल चट्टान (भीम शिला) आकर मंदिर के पीछे रूक गई, इससे टकराकर तेज गति से बढ़ रहा पानी दो भागों में बंटकर मंदिर के अगल-बगल से निकल गया और मंदिर सुरक्षित रहा।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार केदारनाथ में पहले भी भीषण आपदा आई थी। वाडिया इंस्टीट्यूट हिमालय देहरादून के शोध में बताया गया कि यहां 13वीं शताब्दी से लेकर 17वीं शताब्दी तक भीषण बर्फबारी हुई थी। इसमें पूरा मंदिर और ये इलाका बर्फ में दब गया था। 400 वर्षों तक केदारनाथ मंदिर बर्फ में ढंका रहा था। 17वीं शताब्दी में बर्फ पिघली तो मंदिर की यात्रा शुरू की गई।
खास समुदाय के लोग ही होते हैं पुजारी
आदि शंकराचार्य के केदारनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराए जाने के बाद उन्होंने केदारनाथ मंदिर की देखभाल और पूजा-अर्चना का कार्य कर्नाटक राज्य के वीरा शैव जंगम समुदाय के ब्राह्मणों को सौंप दिया था। तब से यह परंपरा आज तक चली आ रही है। इसके साथ ही मंदिर के सभी पूजा-अनुष्ठान और कार्य कन्नड़ भाषा में ही किए जाते हैं।
धार्मिक ग्रंथों में भविष्यवाणी की गई है कि नर नारायण पहाड़ों के मिलन के बाद भविष्य में केदारनाथ धाम लुप्त हो जाएगा। इसके बाद भविष्यबद्री नाम से नया धाम प्रकट होगा।