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नेपाल के पशुपतिनाथ के बगैर अधूरा है भारत का यह ज्योतिर्लिंग, जानिए रहस्य

नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर (Pashupatinath Nepal ) के बारे में हर शिवभक्त जानता होगा, लेकिन आपको शायद ही पता होगा कि पशुपतिनाथ के बगैर भारत का यह ज्योतिर्लिंग अधूरा है। आइये जानते हैं इसका रहस्य ...

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Pravin Pandey

Jun 02, 2023

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पशुपतिनाथ के बगैर अधूरा है भारत का यह ज्योतिर्लिंग

यह शिवलिंग है पशुपतिनाथ का आधा भाग
एक कथा के अनुसार पशुपतिनाथ मंदिर का संबंध केदारनाथ मंदिर (kedarnath Jyotirling) से है। इसके अनुसार स्वर्ग प्रयाण के समय भगवान शिव ने पांडवों को भैंसे के रूप में दर्शन दिए थे और फिर धरती में समा गए। लेकिन उनके पूरी तरह धरती में समाने से पहले भीम ने पूंछ पकड़ ली, जिस स्थान पर भीम ने यह काम किया। इसी जगह पर भगवान का स्वरूप स्थापित किया गया, यही बाद में केदारनाथ धाम कहलाया। वहीं इस भैंसे का मुख धरती से जहां बाहर आया, उसे पशुपतिनाथ कहा गया। इसलिए केदारनाथ ज्योतिर्लिंग को पशुपतिनाथ के बगैर अधूरा माना जाता है।

एक अन्य कथा के अनुसार भगवान शिव एक बार वाराणसी के देवताओं को छोड़कर बागमती नदी के किनारे मृगस्थली चले गए। यह जगह बागमती नदी के दूसरे किनारे पर जंगल में थी। यहां भोलेनाथ चिंकारे का रूप धारण कर योग निद्रा में चले गए। इधर, उनको खोजते खोजते देवता वहां पहुंचे और वाराणसी चलने के लिए आग्रह करने लगे तो उन्होंने नदी के दूसरे किनारे के लिए छलांग लगा दी। इस दौरान उनका सींग चार टुकड़ों में टूट गया, इसके बाद भगवान पशुपति चतुर्मुखलिंग के रूप में प्रकट हुए।


यहां दर्शन से नहीं मिलती पशु योनि
मान्यता है कि इस मंदिर में दर्शन से व्यक्ति को मृत्यु के बाद पशु योनि प्राप्त नहीं होती। हालांकि शर्त यह है कि शिवलिंग के दर्शन के पहले नंदी का दर्शन न किया जाय। यदि कोई ऐसा करता है तो उसे अगले जन्म में फिर पशु बनना पड़ता है। यह भी कहा जाता है कि कोई व्यक्ति यहां आधा घंटा ध्यान करे तो कई प्रकार की समस्याओं से मुक्त हो जाता है।


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कहां है नेपाल का पशुपतिनाथ मंदिर
पशुपति नाथ से तात्पर्य प्राणी मात्र के स्वामी यानी भगवान से है। दूसरे अर्थ में पशुपतिनाथ का तात्पर्य जीवन के मालिक से लिया जाता है। इन्हीं पशुपतिनाथ का मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडू में बागमती नदी के किनारे है। इसे विश्व धरोहर स्थल की सूची में भी शामिल किया गया है।


इस मंदिर में भगवान शिव की पांच मुख वाली मूर्ति है। इस विग्रह में चारों दिशाओं में एक मुंह और एक मुंह ऊपर की ओर है। प्रत्येक मुख के दाएं हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाएं हाथ में कमंडल है। ये पांचों मुख अलग अलग दिशाओं और गुणों का परिचय देते हैं। पूर्व दिशा के मुख को तत्पुरुष, पश्चिम के मुंह को सद्ज्योत, उत्तर के मुंह को वामदेव या अर्धनारीश्वर, दक्षिण के मुंह को अघोरा कहते हैं। ऊपर के मुंह को ईशान मुंह कहते हैं।


भगवान शिव की मूर्ति तक पहुंचने के लिए चांदी के चार दरवाजे बने हुए हैं। पश्चिम द्वार के ठीक सामने नंदी जी की पीतल की विशाल प्रतिमा है। इस परिसर में शैव और वैष्णव परंपरा के कई और मंदिर भी हैं। मान्यता है कि यह केदारनाथ मंदिर का आधा भाग है। मंदिर के द्विस्तरीय छत का निर्माण तांबे से किया गया है, जबकि इस पर सोने का पानी चढ़ाया गया है और इसका शिखर सोने का है, जिसे गुजुर कहते हैं। मंदिर के बाहर आर्यघाट है, केवल इसी का पानी मंदिर में जाता है।