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धौलपुर

जो कार्य कृषि वैज्ञानिक नहीं कर पाए, वह किसान ने कर दिखाया

राजाखेड़ा. जो क्षेत्र कभी बीहड़, बागी और बंदूक के लिए कुख्यात हुआ करता था, वही क्षेत्र आज युवा किसान द्वारिका की दूरदृष्टि, पूर्ण सोच और कड़ी मेहनत के चलते बागवानी के खेती का बड़ा केंद्र बन चुका है, जहां किसान द्वारिका के निर्देशन में ही दो दर्जन से अधिक किसान परिवार 250 बीघा से अधिक क्षेत्र में किन्नू की बागवानी कर रहे हैं।

धौलपुरSep 22, 2020 / 05:18 pm

Naresh

The farmer did the work that the agricultural scientist could not do

जो कार्य कृषि वैज्ञानिक नहीं कर पाए, वह किसान ने कर दिखाया

जो कार्य कृषि वैज्ञानिक नहीं कर पाए, वह किसान ने कर दिखाया

गंगानगरी किन्नू का बड़ा केंद्र बना राजाखेड़ा

राजाखेड़ा. जो क्षेत्र कभी बीहड़, बागी और बंदूक के लिए कुख्यात हुआ करता था, वही क्षेत्र आज युवा किसान द्वारिका की दूरदृष्टि, पूर्ण सोच और कड़ी मेहनत के चलते बागवानी के खेती का बड़ा केंद्र बन चुका है, जहां किसान द्वारिका के निर्देशन में ही दो दर्जन से अधिक किसान परिवार 250 बीघा से अधिक क्षेत्र में किन्नू की बागवानी कर रहे हैं।
जिससे पंजाब और उसके सीमावर्ती गंगानगर में ही पैदा होने वाला उत्तम गुणवत्ता का किन्नू आज सीमाओं की हदें लांघकर राजाखेड़ा के बागानों का नाम रोशन कर रहा है। वहीं किसानों की माली हालत में भी तेजी से सुधार कर रहा है।

यों हुआ संभव
राजाखेड़ा उपखंड के सिंध्यापुरा का युवा कृषक द्वारिका 1998 में अपने खेत की मिट्टी लेकर कृषि विभाग पहुंचा और जानकारी मांगी की। इसमें किन्नू की बागवानी की जा सकती है। कृषि विभाग के अधिकारियों ने जांच कर इसमें किन्नू उत्पादन की संभावना को नकार दिया। अगले वर्ष द्वारिका फिर विभाग गया और फिर यही उत्तर मिला। उसने निजी तौर पर भी अन्य अधिकारियों से बात की, लेकिन सभी ने उसे निराश कर लौटा दिया। लेकिन धुन का पक्का द्वारिका ने वर्ष 2000 में गंगानगर जाकर वहां से 152 पौधे अच्छी गुणवत्ता के पौधे खरीदे और गांव में अपनी 4 बीघा निजी जमीन पर बाग लगा दिया। इसमें उसने गोबर का खाद ही इस्तेमाल किया। उसकी मेहनत रंग लाई और तीसरे वर्ष ही पौधों पर किन्नू का जबरदस्त उत्पादन हुआ, तो द्वारिका का बाग जिले भर के कृषि अधिकारियों के आश्चर्य का केंद्र बन गया और विभागीय कर्मचारी उसे देखने आने लगे।
इसके बाद द्वारिका ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। हालांकि पहले वर्षो में उसे उत्पादन को अच्छी कीमत के लिए मंडियों में पहुंचाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। लेकिन उम्दा गुणवत्ता के चलते उत्तरप्रदेश के व्यापारी उसके बाग पर ही पहुंचने लगे।
ओरों के लिए बना प्रेरणा
द्वारिका की सफलता से वह उपखंड के अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणा स्रोत बनने लगा और अन्य युवा भी उससे परामर्श लेने लगे। जिससे पिछले एक दशक में लगभग 2 दर्जन किसान 250 बीघा क्षेत्र में किन्नू का बड़ा उत्पादन कर रहे है। किसी भी परेशानी के समय द्वारिका का मार्गदर्शन लेते रहते हैं।
तिगुना मुनाफा
द्वारिका ने पहले वर्ष तो सिर्फ किन्नू के पौधे ही रोपित किए, लेकिन उसके बाद उसने पौधों के बीच 70 फीसदी खाली जगह पर टमाटर के पौधे लगाए, तो उसमें भी अच्छा मुनाफा हुआ। तब उसने बागों के बीच ही बाजरा, सरसों की खेती भी आरम्भ कर दी तो मुनाफा भी तिगुना होने लगा।
केवल ऑर्गेनिक खेती
द्वारिका अपने खेतों और बागों में रासायनिक खादों का प्रयोग नहीं करता, सिर्फ ऑर्गेनिक खेती गोबर के खाद से ही करता है। जिसके चलते उसके उत्पादों को अतिरिक्त कीमत भी मिल जाती है, जो मुनाफे की दर को और बढ़ा देती है।
आगे आए किसान
द्वारिका ने बताया कि पारंपरिक खेती के साथ ही अगर बागवानी की जाए, भले ही वह किसी भी फल की हो तो मुनाफा कई गुना बढ़ा देती है। जो क्षेत्र की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन ले आएगी। आवश्यकता है तो सिर्फ दृढ़ इच्क्षाशक्ति और कड़ी मेहनत की। साथ ही सरकारी विभागों के कर्मच्चरियों के बड़े सहयोग की, जो किसानों को प्रेरणा दे सके। उसके बाद क्षेत्र के हालात को तेजी से बदला जा सकता है।
हो मंडी की स्थापना
जिस तेजी से उत्पादन बढ़ रहा है, अगर यहां मंडी स्थापित हो जाए तो किसानों की परिवहन लागत में बड़ी कटौती हो सकती है। जिससे उनकी आय तो बढ़ेगी ही, सरकार का राजस्व भी बढ़ेगा और आगे चलकर क्षेत्र में खाद्य प्रसंस्करण के कारखानों की स्थापना भी संभव हो पाएगी। जिससे पढ़े लिखे युवा वर्ग को रोजगार भी मिलेगा।

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