द्वारिका ने पहले वर्ष तो सिर्फ किन्नू के पौधे ही रोपित किए, लेकिन उसके बाद उसने पौधों के बीच 70 फीसदी खाली जगह पर टमाटर के पौधे लगाए, तो उसमें भी अच्छा मुनाफा हुआ। तब उसने बागों के बीच ही बाजरा, सरसों की खेती भी आरम्भ कर दी तो मुनाफा भी तिगुना होने लगा।
द्वारिका अपने खेतों और बागों में रासायनिक खादों का प्रयोग नहीं करता, सिर्फ ऑर्गेनिक खेती गोबर के खाद से ही करता है। जिसके चलते उसके उत्पादों को अतिरिक्त कीमत भी मिल जाती है, जो मुनाफे की दर को और बढ़ा देती है।
आगे आए किसान
द्वारिका ने बताया कि पारंपरिक खेती के साथ ही अगर बागवानी की जाए, भले ही वह किसी भी फल की हो तो मुनाफा कई गुना बढ़ा देती है। जो क्षेत्र की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन ले आएगी। आवश्यकता है तो सिर्फ दृढ़ इच्क्षाशक्ति और कड़ी मेहनत की। साथ ही सरकारी विभागों के कर्मच्चरियों के बड़े सहयोग की, जो किसानों को प्रेरणा दे सके। उसके बाद क्षेत्र के हालात को तेजी से बदला जा सकता है।
जिस तेजी से उत्पादन बढ़ रहा है, अगर यहां मंडी स्थापित हो जाए तो किसानों की परिवहन लागत में बड़ी कटौती हो सकती है। जिससे उनकी आय तो बढ़ेगी ही, सरकार का राजस्व भी बढ़ेगा और आगे चलकर क्षेत्र में खाद्य प्रसंस्करण के कारखानों की स्थापना भी संभव हो पाएगी। जिससे पढ़े लिखे युवा वर्ग को रोजगार भी मिलेगा।