ग्रामीण क्षेत्र के लोग भी सट्टेबाजी में खूब दिलचस्पी दिखाते हैं। उनके लिए यह आवश्यक नहीं की सटोरियों के पास जाकर ही सट्टे का नम्बर लगाया जाए। वर्तमान में स्मार्ट फोन के माध्यम से सारी व्यवस्थाएं सुचारू चलती हैं।
हैरानी की बात यह कि लोग सट्टे के नम्बर को लेने के लिए अंधविश्वास में डूब कर लोग उत्तर प्रदेश व मध्यप्रदेश तक साधु महात्माओं के गहन सम्पर्क में रहते हैं।
कानून में नहीं कड़ी सजा
जुआ सट्टा कानूनन अपराध तो है, पर जमानती है। जिसके चलते सटोरियों को पुलिस गिरफ्तार भी करती है तो राजस्थान प्रिवेंशन ऑफ गैंबलिंग एक्ट में कुछ ही देर में थाना स्तर पर जमानत मिल जाती है और सटोरिया थाने से निकलते ही पुन: अपने धंधे में रम जाता है। कई बार तो पुलिस के दबाव में मासिक आंकड़े पूरे करने के लिए बड़े सटोरिये खुद ही छोटे खाईवालों को थाने भेजकर टारगेट पूरे करवा देते है, जहां सटोरियों पर 500 से 1500 तक के पर्चे दिखा कर पुलिस अपने टारगेट की इतिश्री कर लेती है।
आवश्यक है संगठित अपराध पर चोट
लोगों का मानना है कि पुलिस को छोटे सटोरियों से टारगेट पूरा करने की जगह बड़े गद्दी मालिकों को पकड़ कर उनपर संगठित अपराध की धाराओं में कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए। जिससे ऐसे अपराधों पर लगाम लग सके।