नाक के अंदर ऊपरी भाग में बेहद बारीक छेदों में सूंघने में सहायक रिसेप्टर कोशिकाएं होती हैं। जो संवेदनाओं को कई कोशिकाओं व ओलफेक्टरी नर्व से होते हुए दिमाग के विशेष भाग में पहुचांती हैं। इससे हमें गंध की जानकारी होती है।
एनोस्मिया : बिल्कुल भी गंध का अहसास न होना।
हाइपोस्मिया : सूंघने की क्षमता में कुछ कमी आना।
पेरोस्मिया : गंध का आसामान्य या बदला हुआ आभास होना।
फैन्टोस्मिया : एक भ्रम के रूप में गंध महसूस करना जबकि वास्तव में यह मौजूद ही नहीं होती।
हाइपरऑस्मिया : गंध की तीव्र क्षमता की पहचान।
सूंघने में कमी कुछ रोगियों में जन्मजात हो सकती है। ऐसा बाद में साधारण जुकाम या सर्दी होने पर भी हो सकता है। नाक के अंदर कई समस्याएं जैसे पॉलिप्स बनना, साइनुसाइटिस, एट्रॉफिक, राइनाइटिस, सेप्टम या टरबीनेट्स हड्डी का बढऩा, गांठें होना इसके अन्य कारण भी हो सकते हैं। अन्य कारणों में सिर या नाक पर चोट लगना, दिमाग में संक्रमण, तंत्रिका तंत्र या कुछ रोगों में भी ऐसा होता है।
नाक की दूरबीन से जांच की जाती है। कुछ मामलों में सीटी स्कैन या एमआरआई की जरूरत पड़ सकती है। बीमारी का कारण पता चलने पर ही उसका इलाज किया जाता है।
नाक में यदि पॉलिप्स बन गए हों या टरबीनेट्स बढ़ गए हों तो उसका इलाज करते हैं। इलाज के दौरान कुछ समय के लिए ओरल स्टेरॉयड दवाएं भी दी जाती हैं जिन्हें भविष्य में नेजल स्प्रे के रूप में प्रयोग किया जाता है। कुछ लोगों में इसका इलाज पूरी तरह से संभव है। लेकिन ऐसे मामले जिनमें रोगी को यदि विशेषकर सिर में कोई चोट लगी हो तो समस्या के स्थायी बने रहने की आशंका रहती है।