आयोडिन की कमी, ऑटोइम्यून डिजीज, थायरॉइड ग्रंथि में गांठें। थायरॉइड की समस्या आनुवांशिक कारणों से भी हो सकती है। कुछ खास प्रकार के बैक्टीरिया और वायरस से ग्रंथि में सूजन से भी थायरॉइड ग्रंथि में कैंसर की गांठें बनने से भी यह परेशानी होती है। कुछ मेडिकल कंडीशन जैसे रेडियो थैरेपी और थायरॉइड सर्जरी आदि होती है।
भूख कम लगना, वजन बढ़ना, गले के पास सूजन और थकान होना। दिल की धड़कनों का कम होना, आलस्य और ज्यादा कमजोरी होना। इसके साथ ही अवसाद, त्वचा का रूखा होना और पसीना कम आना। गर्मी में भी ठंडक महसूस, याद्दाश्त में कमी होना और बालों का झड़ना। महिलाओं में अनियमित माहवारी व बांझपन की समस्या हो सकती है। साथ ही महिलाओं में समय से पहले माहवारी बंद (प्री मेनोपॉज) होना।
जांच और इलाज
थायरॉइड के लिए बड़ों और बच्चों में एक जैसी जांचें होती है। ब्लड टेस्ट से डीएसएच, टी3 और टी4 तीनों जांच जरुरी होती हैं। इस टेस्ट में ही हार्मोन लेवल बढ़ने और घटने का पता चलता है। यह टेस्ट शुरू में शिशुओं में एक या दो सप्ताह पर करवाए जाते हैं। बड़ों में दवा शुरू होने पर एक-दो माह के अंतराल पर कराते हैं। थायरॉइड हार्मोन को कंट्रोल करने के लिए दवा दी जाती है। ये दवा डायबिटीज और बीपी की तरह रोजाना लेना जरुरी होता है
थायरॉइड की दवा सुबह खाली पेट लेने की सलाह दी जाती है
ऐसे करें बचाव
इसके मरीजों में आयोडिन, सेलेनियम व जिंक की कमी हो जाती है। वहीं फूड ज्यादा खाने चाहिए जिसमें ये अधिक मात्रा में मिलते हैं। इसके लिए मशरूम, अंडा, दही, अलसी और सूखे मेवे खा सकते हैं। स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं, तनाव और गलत खानपान से दूर रहें। हृदय, डायबिटीज आदि बीमारियां है तो इसको नियंत्रित रखें। कुछ योगासान जिनका नियमित अभ्यास कर इससे बच सकते हैं। जैसे उज्जयी प्राणायाम, धनुरासन, हलासन, सर्वांगासन आदि करें।