डूंगरपुर

डूंगरपुर में है दुर्लभ पीला पलाश, इसके केसरिया रंग से खेली जाती है Holi

Yellow Palash Wonderful : डूंगरपुर में है दुर्लभ पीला पलाश पाया जाता है। इस पलाश के फूलों से होली के लिए बनाए जाते हैं प्राकृतिक रंग। इसके रंग से होली का त्योहार उल्लास पूर्वक मनाया जाता है।

डूंगरपुरMar 23, 2024 / 07:44 pm

Sanjay Kumar Srivastava

Yellow Palash

वरुण भट्ट / मिलन
Holi with Palash Color : वरुण भट्ट मिलन ऋतुराज बसंत के आगमन के साथ ही अपने पूरे यौवन पर पल्लवित होकर पलाश प्रकृति की खुबसूरती में चार चांद लगा देता है। पलाश के सुर्ख रंगों की चटक सबका मन मोह लेती है। होली में तो पलाश की धूम मची रहती है। इस पलाश के फूलों से होली के लिए प्राकृतिक रंग बनाए जाते हैं। इसके रंग से होली का त्योहार उल्लासपूर्वक मनाया जाता है। यूं तो पलाश सर्वत्र पाया जाता है। पर, दक्षिणी राजस्थान में प्रकृति ने पलाश को बहुतायात मात्रा में पनपाया है। इसमें भी डूंगरपुर जिले में दुर्लभतम पीला पलाश है। पर्यावरणीय, औषधीय, ज्योतिष एवं रोजगार के हिसाब से यह पलाश अत्यधिक समृद्ध है। यदि प्रशासनिक एवं राजनीतिक इच्छा शक्ति दिखाई जाए, तो पलाश का यह वृक्ष इस क्षेत्र के विकास में मील का पत्थर साबित हो सकता है।



वागड़ के बांसवाड़ा-डूंगरपुर सहित प्रदेश के सुदूर वन क्षेत्रों में लाल पलाश के दर्जनों पेड़ सहज नजर आते हैं। लेकिन, पीला पलाश (ब्यूटिका मोनास्पर्मा ल्यूटिका) का वृक्ष दृर्लभतम वृक्षों में से एक हैं। पूरे प्रदेश में इनकी संख्या महज सौ या सवा सौ मानी जाती हैं। इसमें भी डूंगरपुर जिले में इनकी संख्या करीब एक दर्जन के आसपास है और सभी घने वृक्ष हैं। इन दिनों इन पर पीले पुष्प पूरी प्रकृति में अपनी अलग आभा बिखेर रहे हैं।

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पलाश के फूलों को होली के 10 या 15 दिन पूर्व एक मटके में डालकर उसे में पानी डाला जाता है, जिससे पलाश के फूल पानी में गुल कर पानी का रंग पूरी तरह से केसरिया कर देते हैं। प्राकृतिक कलर केमिकल से दूर ग्रामीण इलाकों में आज भी इसी रंग से होली का त्योहार उल्लास पूर्वक मनाया जाता है।

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वर्ष 2022 में डूंगरपुर-बांसवाड़ा मार्ग राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 927 ए के विस्तार का कार्य चल रहा था। इस दौरान सरकण घाटी के पास स्थित पीला पलाश का पेड़ भी हाइवे की भेंट चढ़ रहा था। इस पर राजस्थान पत्रिका ने इस दुर्लभ वृक्ष को कटन से बचाने के लिए मुहिम चलाई थी और आखिरकार इस वृक्ष नहीं काटा गया। पर्यावरणविज्ञों ने इसके सीड्स भी तैयार कर नए पौधे भी तैयार किए।

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प्रकृतिप्रेमियों के अनुसार पलाश को स्थानीय भाषा में धोला खाखरा भी कहते हैं। इससे पत्तल एवं दौने भी बनते हैं। इसके एक फली मेें एक ही बीज होता है। इसकी पाखडी में छोटे-छोटे रोये होते हैं। सूखने पर हवा के वेग से यह उड़ते तथा मिट्टी में नमी होने पर इनका पल्लवन होता है। इनका रोपण करें, तो ईको टूरिज्म को बढ़ावा मिल सकता है। इससे स्थानीय लोगों की रोजगार मिलेगा।



पलाश का औषधीय महत्व भी काफी अधिक है। लाल और पीले दोनों ही पलाश के गुण धर्म समान है। बच्चों को इसका लाल गोंद पानी में पीसकर गुट्टी दी जाए, तो डायरिया तुरंत बंद हो जाता है। किडनी एवं मूत्र रोगों के लिए इसके फूलों को मिट्टी के बर्तन में रात को भीगो कर सुबह छान कर पीने से लाभ मिलता है। वहीं, लू लगने पर इसके फूलों को पानी में घोल कर नहाने से राहत मिलती है। इसके साथ ही पलाश का पौधा ज्वर, चर्म रोग, सिरोसिस, डायबिटीज सहित विभिन्न रोगों में रामबाण के समान काम करता है। कई गांवों में व्हाइट वाश (आरास) करने के लिए इसके वृक्ष की जड़ से कूची (ब्रश) बनाते हैं। तेजी से कम हो रहे इन वृक्षों को संरक्षित करने की जरूरत है। वनप्रेमियों एवं क्षेत्रीय लोगों को चाहिए कि वह इसके वृक्षों संवर्धन की दिशा में सार्थक प्रयास करें।

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