बीमार होने की वजह से उन्हें 108 से लाकर जिला अस्पताल में भर्ती तो करा दिया है लेकिन डिस्चार्ज होने के बाद उन्हें कहां भेजा जाए यह समस्या सामने है। इसे गंभीरता से लेते हुए न्यायाधीश ने समाज एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा संचालित वृद्धा आश्रम में रखने के लिए वृद्धजनों से सहमिति लेने पहुंचे थे। तीन वृद्ध मरीजों से मुलाकात करने के बाद न्यायाधीश आइसोलेशन वार्ड पहुंचे। वहां पर एक किन्नर भर्ती थी। बातचीत में न्यायाधीश को लगा कि किन्नर मनरोगी है। इस संबंध में चर्चा करने के वे एनएचएम द्वारा संचालित मनोरोग विभाग पहुंचे। वहां डॉक्टर की गैर मौजदूगी और डॉक्टर के बारे में जानकारी नहीं मिलने पर उन्होंने नराजगी व्यक्त की।
मरीजों से मुलाकात के दौरान न्यायाधीश की नजर वार्ड में खड़े युवक संदीप कहार पर पड़ी। तब वह मरीजों को खाना खिला रहा था। न्यायाधीश ने तत्काल युवक से पूछताछ की। तब उसने कहा कि वह हर रोज सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक जिला अस्पताल में रहता है और बेसहारा मरीजों का जतन करता है। इस कार्य के लिए शदाणी दरबार के अध्यक्ष राजू पाहूजा 10 हजार मासिक वेतन देते हैं। वृद्ध मरीजों को नहलाने से लेकर खाना खिलाने में अस्पताल के कर्मचारी रुचि नहीं दिखाते। यह सुनने के बाद न्यायाधीश ने नेक काम करने पर संदीप कहार की पीठ थपथपाई।
शासन की योजना के तहत शहर में घुमने वाले मनोरोगियों को जिला विधिक सेवा प्राधिकरण सेंदरी बिलासपुर अस्पताल में भर्ती कराने के लिए योजना बना रही है। उन्हें न्यायालयीन आदेश के बाद ही भेजा जा सकता है। न्यायाधीश राहुल शर्मा ने कहा कि इसके लिए जब तक स्वास्थ्य विभाग और पुलिस विभाग सक्रियता नहीं दिखाएगा मनोरोगियों का ईलाज संभव नहीं है। इसलिए वे अभियान को शुरू करने के लिए पहले प्रारंभिक तैयारियां कर रहे हैं, ताकि मनोरोगियों की जांच और मेडिकल प्रमाण पत्र लेने में किसी तरह की दिक्कत न आए।
न्यायाधीश से चर्चा के दौरान मरीजों ने बताया कि डॉक्टर उनसे मुह मोड़ते हंै। आए दिन छुट्टी करने की धमकी देते हैं। अपनों से ठुकराने की पीड़ा और जिला अस्पताल में होने वाले उपेक्षापूर्ण व्यवहार से वृद्ध जनों का दर्द आंखों से छलक रहा था। इस समस्या को सुनने के बाद न्यायाधीश ने सिविल सर्जन से मुलाकात की और निर्देश दिए कि इस तरह के मरीजों के साथ अच्छा व्यवहार किया जाए। साथ ही संपूर्ण ईलाज होते तक भर्ती रखा जाए। अगर मरीजों के नाते रिश्तेदार घर ले जाने से इनकार करते हैं, तो उनकी सूचना तत्काल विधिक सेवा प्राधिकरण कार्यालय में दे।
सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण राहुल शर्मा ने बताया कि जिले में ऐसे वृद्ध जिन्हें रिश्ते नातेदारों ने ठुकारा दिया है, उन्हें वृद्धा आश्रम में रखा जाएगा। इसके लिए औपचारिकता (दस्तावेज तैयार करना) आवश्यक है। आमतौर पर इस जिम्मेदारी से सभी मुंह मोड़ लेते हैं। यही हाल मनोरोगी का है। जिला अस्पताल के निरीक्षण के दौरान मनोरग विभाग खाली मिला। इसे हमने गंभीरता से लिया है और व्यवस्था में सुधार लाने सीएचएमओ को पत्र लिखने का निर्णय लिया है।
1. इस तरह के मरीजों का अलग से नाम लिखा जाए। अस्पताल में दाखिल कराने वाले का भी पता रखें, ताकि समय आने पर परिजनों से संपर्ककिया जा सके।
2. जो चार मरीज भर्ती हैं उनसे बातचीत कर संंबंधित थाना की पुलिस से जानकारी लेकर प्राधिकरण को अवगत कराएं। ताकि औपचारिकता पूरी कर वृद्ध जनों को वृद्धा आश्रम भेजा जा सके।
3. किसी भी बेसहारा वृद्ध को निजी संस्थान में रहने के लिए कतई न भेजें।