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सात फेरों के समय वर के बायीं ओर ही क्‍यों बैठती है वधू? जानें इसके पीछे छिपे 10 कारण

क्या कहते है हिंदू धर्म से जुड़े संस्कार दुल्‍हन को दूल्‍हें के बायी ओर क्यों बैठाया जाता है

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नई दिल्ली। हमारे वैदिक ग्रंथों में सोलह संस्कारों को विशेष स्थान दिया गया है,इन्ही संस्कारों में से एक है विवाह संस्कार। जिसका अपना ही अलग महत्व है। इसके बिना मानव का जीवन पूर्ण नहीं हो सकता। विवाह का शाब्दिक अर्थ होता है – अपने (उत्तरदायित्व का) वहन करना। शादी के इस अटूट बंधन को बनाये ऱखने के लिये हमारे धर्म में कई तरह की रस्में निभायी जाती है। मंगलसूत्र का डालना, सिंदूर भरना, और सात फेरे के साथ पूरे जन्म के लिए एक दूसरे से बंध जाना। पर आपने इस बात पर कभी गौर किया है कि विवाह की रस्‍में शुरु होने से पहले वधू, वर के दाह‍िनें ओर बैठती है लेकिन तीसरे या चौथे फेरो के बाद वधू, वर के बायीं ओर आकर बैठ जाती है। आखिर इसका क्या कारण है। कि फेरो के बाद वधू को हमेशा वर के बायीं ओर ही क्यो बैठाया जाता हैं ? आइए जानते है इसके पीछे छिपे कारण के बारे में।
हिंदू विवाह के अनुसार
हमारे हिंदु विवाह में दुल्‍हन को दूल्‍हें के बायी ओर बिठाया जाता है ये परंपरा आजीवन से चली आ रही है। यहां तक हर बड़े धार्मिक अनुष्‍ठान के समय में भी पत्‍नी पति के बायीं ओर ही बैठती है। वधु,वर के बायीं ओर बैठती है, इसीलिए हमारे हिन्दू धर्म में पत्नी को ‘वामांगी'भी कहा गया है।
ज्‍योतिष शास्त्र के अनुसार
ज्‍योतिष शास्‍त्री के अनुसार पत्नी का स्थान पति के बायीं ओर ही होता है, क्‍योंकि शरीर और ज्योतिष, दोनों विज्ञान में पुरुष के दाएं और स्त्री के बाएं भाग को शुभ और पवित्र माना गया है।

हस्‍तरेखा के अनुसार
आप जब भी अपनी हथेली किसी पंडित के दिकाते है तो वो हमारे बायें हाथ को ही पकड़ते है क्योकि हस्तरेखा शास्त्र में भी महिलाओं का बायां और पुरुष का दायां हाथ ही शुभ होता है। शरीर विज्ञान के अनुसार मनुष्य के शरीर का बायां हिस्सा मस्तिष्क की रचनात्मकता और दायां हिस्सा उसके कर्म का प्रतीक है।
इंसान के स्‍वभाव बताता है
हर कोई जानता हैं कि स्त्री अपने स्वभाव से ममतामयी होने के साथ करूणा का सागर होती है। और उसके भीतर रचनात्मकता होती है, इसीलिए स्त्री का बाईं ओर होना प्रेम और रचनात्मकता की निशानी है। वहीं पुरुष का दया अंग कठोरता का प्रतीक है क्‍योंकि ये इस बात का प्रमाण होता है कि वो शूरवीर और दृढ होगा। किसी भी शुभ कर्म में वह दृढ़ता से उपस्थित रहेगा। जब भी कोई शुभ कार्य दृढ़ता और रचनात्मकता के मेल के साथ संपन्न किया जाता है तो उसमें सफलता मिलना निश्‍चित है।

धार्मिक कारण
हमारे हिंदू धर्म में आपने भी देखा होगा कि साधी के जोड़े को विष्णु जी और लक्ष्‍मी जी का अवतार माना जाता है। और शास्‍त्रों में हमेशा लक्ष्‍मी का स्‍थान श्री विष्‍णु के बायीं और होने का उल्‍लेख मिलता हैं। यही कारण हैं कि हिंदूओं विवाह में फेरो के समय लड़की का स्‍थान बदल दिया जाता है उसे बायीं ओर बैठा दिया जाता है।
क्रिश्‍चियन विवाह
यह पंरपरा हिदू धर्म में ही नही अन्य दूसरे धर्मों में बी देखी जा सकती है। क्रिश्‍चियन समाज में भी शादी के समय दुल्‍हन हमेशा पुरुष के बायीं ओर खड़ी होती है। इसके भी कई धर्मिक और सामजिक कारण है।
पुरुष रक्षक और शक्‍ति का प्रतीक
क्रिश्‍चयन विवाह में पुरुषों को रक्षक और शक्‍ति का प्रतीक माना गया है। पुराने जमाने में जब युद्ध होते थे उस समय से पुरुषों पर स्‍त्री की रक्षा करने का दायित्‍व होता था। ऐसे में किसी हमले की संभावना होने पर पुरुष अपनी पत्नि को सुरक्षित रखने के लिये उसे बायी ओर रखकर दायें हाथों में रखी तलवार से शत्रु को रोकता था। जो पंरपरा आज भी चली आ रही है।

कैथलिक मान्‍यताओं के अनुसार
बताया गया कि स्‍त्री बाई ओर इसलिए होती है ताकि वो वर्जिन मेरी के करीब रहे और उसके कौमार्य की पवित्रता बनी रहे।
सामाजिक कारण
यह प्रथा हमारे देश में ही नही बल्कि दूसरे देशों में देखने को मिलती हैै। भले ही उनके रीति रीवाज अलग हो, पर पति पत्नि का बंधन एक ही रीति के अनुसार बंधता है। क्रिश्‍चयन विवाह में भी पुरुष से सात वचन लिये जाते है और वधु भी हमेशा वर के बायी ओर रहती है। ये परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। ब्रिटेन में क्‍वीन सत्‍ता के शीर्ष पर रहती आ रही हैं इसलिये क्‍वीन को भी हमेशा राइट में ही खड़े रहना ज़रूरी होता है।