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मुक्ति ही नहीं बल्कि इस वजह से मारा जाता है मृतक के सिर पर डंडा

शरीर के 11 द्वारों में से सर्वश्रेष्ठ है मस्तिष्क, जिसे ब्रम्ह्रंथ्र कहते हैं

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हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार के कई नियम है। इसके तहत मृतक के सिर पर तीन बार डंडा मारने की भी प्रथा है। शास्त्रों के मुताबिक ऐसा करने से मरने वाले की आत्मा को शांति मिलती है। मगर इसके अलावा एक और वजह है जिसके चलते ऐसा किया जाता है। तो क्या है इसका कारण आइए जानते हैं।

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हिंदू शास्‍त्रों के मुताबिक मनुष्य के शरीर में 11 द्वार होते हैं। इन्हीं के जरिए जन्म के समय आत्मा शरीर में प्रवेश करती है और इन्हीं रास्तों के जरिए बाहर निकलती है। मान्यता है कि ज्यादातर मनुष्यों के प्राण ब्रम्ह्रंथ्र यानि मस्तिष्क से निकलती है।

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ब्रम्ह्रंथ्र को शरीर का सबसे उच्च और श्रेष्ठ मार्ग माना जाता है। इसलिए जिन लोगों की आत्मा मस्तिष्क से निकलती है, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और वे जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं। इस प्रक्रिया को 'कपाला मोक्षम' कहते हैं।

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हिंदू धर्म में व्यक्ति के अंतिम संस्कार के दौरान उसके सिर पर बांस के डंडे से तीन बार प्रहार किया जाता है। ग्रंथों के अनुसार इस प्रक्रिया से आत्मा को शरीर से बाहर निकालने में मदद की जाती है। क्योंकि इंसान की खोपड़ी सख्त होती है और वो आसानी से नहीं टूटती है। मगर डंडा मारने से ये क्रिया थोड़ी आसान हो जाती है।

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माना जाता है कि जब मृतक के सिर पर डंडा मारा जाता है उससे मस्तिष्क का ढांचा थोड़ा कमजोर हो जाता है। जो आग के संपर्क में आकर जल्दी टूट जाता है। इससे व्यक्ति की आत्मा को ज्यादा कष्ट नहीं झेलना पड़ता है।

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शास्त्रों में एक और तर्क दिया गया है जिसके तहत सिर पर डंडा इसलिए मारा जाता है जिससे आत्मा का दुरुपयोग न किया जा सके। दरअसल मरने के बाद शरीर से तो आत्मा निकल जाती है, लेकिन वो संसार से तब तक मुक्त नहीं होती, जब तक उसका अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी न हो।

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यदि सिर पर डंडा न मारा जाए तो व्यक्ति की आत्मा उसके शरीर में ही रहती है। इसका तंत्र विद्या के जरिए गलत इस्तेमाल हो सकता है क्योंकि मृतक का शरीर तमाम सिद्धियों को प्राप्त करने का बेहद आसान तरीका होता है। तांत्रिक आत्मा को अपने वश में कर कोई भी काम करवा सकते हैं। इससे बचने के लिए ही सिर पर तीन पर डंडा मारकर आत्मा को शरीर से मुक्त कराया जाता है।

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मरने वाले के सिर पर इसलिए भी डंडा मारते हैं क्योंकि यदि कोई व्यक्ति अपने जीते जी तांत्रिक क्रियाएं करता था या उसके पास कोई ऐसी शक्ति थी तो उसके मरने के बाद तांत्रिक उसकी शक्तियों को चुरा सकते हैं। तांत्रिक तंत्र विद्या के जरिए मृतक की आत्मा को अपने वश में कर सकते हैं।

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मृतक के सिर पर डंडा मारने की क्रिया को हिंदू धर्म में 16 संस्कारों में से एक माना जाता है। ऐसा करने से व्यक्ति् की आत्मा को शांति मिलती है। इससे पूर्वज भी प्रसन्न रहते हैं। जिसके कारण परिवार या वंश पर किसी तरह का संकट नहीं आता है और न ही पितृदोष लगता है।

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मृतक के अंतिम संस्कार के दौरान केवल पुरुष भाग लेते हैं। जबकि महिलाएं घर पर रहती हैं, क्योंकि स्त्रियों का दिल कमजोर होता है और वो ये सब देखकर रो सकती हैं। उनकी इसी भावुकता के चलते मरने वाली की आत्मा प्रसन्न होकर नहीं जा पाती है इसलिए महिलाएं शमशान नहीं जाती हैं।