
इस वजह से निर्वस्त्र रहते हैं जैन मुनि, करते हैं कठिन व्रत का पालन
1.जैन मुनियों को दिगंबर कहा जाता है। दिगंबर का मतलब है जो अंतरंग-बहिरंग परिग्रह से रहित है वो निर्ग्रन्थ है। निर्ग्रन्थता का अर्थ है क्रोध, मान, माया, लोभ, अविद्या, कुसंस्कार काम आदि से मुक्त होना। वहीं अंतरंग ग्रंथि का मतलब है धन धान्य, स्त्री, पुत्र सम्पत्ति, विभूति आदि से मुक्त हो।
2.जैन मुनियों को निर्ग्रन्थ भी कहते हैं। क्योंकि उन्होंने सारी चीजों को त्यागा होता है। वहीं इनके दिगंबर कहलाने का मतलब होता है, इन्होंने दिशाओं को ही अपन वस्त्र बना लिया है और उसे ही धारण करना है।
3.दिगंबरों का जीवन बहुत कठिन होता है। इन्हें आजीवन ब्रम्हचर्य व्रत का पालन करना होता है। साथ ही सांसारिक सुखों को त्यागने के साथ वस्त्रों को भी छोड़ना पड़ता है। क्योंकि जैन गुरू के मुताबिक जिस तरह से बाल्यकाल में बच्चे नग्न अवस्था में होने के बावजूद सच्चे होते हैं। उसी तरह वस्त्र त्यागकर मुनि भी तमाम भावनाओं से मुक्त हो जाते हैं।
4.जैन धर्म के मुताबिक वस्त्रों का त्याग करने से व्यक्ति के मन में दूसरों के प्रति होने वाला आकर्षण भी खत्म हो जाता है। ऐसे में मुनि एक बच्चे के समान हो जाता है। जिस तरह एक बच्चे को बिना कपड़ों के देखने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। उसी तरह मुनियों को देखने पर भी कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए।
5.जैन मुनियों को गर्मी, सर्दीा, बरसात सारे मौसम में एक समान रहना होता है। वे अपने पास केवल पिच्छी (मोर पंख से बनती है जो चींटी आदि कीड़ों को अहिंसा पूर्वक हटाने का उपकरण है),कमंडल (शौच के लिए पानी रखने का उपकरण) और शास्त्र रख सकते हैं।
6.ईश्वर के प्रति अपनी आस्था दर्शाने और लोगों को कल्याण के मार्ग पर ले जाने के लिए दिगंबरों को इधर से उधर जाना पड़ता है। अपने इस सफर के दौरान वे जूते-चप्पल भी नहीं पहन सकते हैं। फिर चाहे कितनी भी तपती सड़क हो या खराब स्थिति हो। उन्हें नंगे पैर ही चलना पड़ता है।
7.दिगंबर साधुओं को अपने बाल और दाढ़ी का भी त्याग करना पड़ता है। मगर जैसे कि वो कोई सामान नहीं रख सकते हैं, इसलिए उन्हें अपने बाल हर 2 से 4 महीनों में खुद ही उखाड़ने होते हैं।
8.दिगम्बर जैन साधूओं को पूरे दिन में सिर्फ एक वक्त भोजन करना होता है। उन्हें अपने हाथों में खाना लेकर खड़े होकर खाना होता है। उन्हें पूर्ण रूप से शाकाहारी भोजन करना होता है।
9.दिगंबर साधुओं का गद्दे पर सोना वर्जित है। वे सोते समय तकिया एवं चादर का भी इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। इसलिए उन्हें महज लकड़ी के तख्त और जमीन पर सोना होता है।
10.यूं तो दिगम्बर साधुओं को महीने में कुछ दिनों तक उपवास रखना होता है, मगर जीवन के आखिरी समय में वे सल्लेखना करते हैं। इसे समाधी मरण भी कहा जाता है। इस दौरान साधू को भोजन पानी आदि का त्याग करते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि अब उनका बचना मुश्किल है।
Published on:
01 Sept 2018 01:01 pm
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