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यहां आज भी मौजूद है भगवान शिव का त्रिशूल, शनिदेव से नाराज होकर किया था वार

भगवान शिव का यह मंदिर झारखंड से करीब 150 किलोमीटर दूर स्थित है, इसे परशुराम की तपोभूमि भी कहते हैं।

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baba tanginath

यहां आज भी मौजूद है भगवान शिव का त्रिशूल, शनिदेव से नाराज होकर किया था वार

नई दिल्ली। भारत देश में भगवान के चमत्कारों के किस्से दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। एक ऐसे ही उदाहरण के तहत झारखंड के गुमला में स्थित भगवान शिव का मंदिर भी शामिल है। इस पावन स्थल को बाबा टांगीनाथ के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि यहां आज भी भगवान शिव का त्रिशूल मौजूद है।

1.भगवान शिव का यह मंदिर रांची से करीब 150 किलोमीटर दूर स्थित है। इस जगह को परशुराम की तपस्थली भी माना जाता है।

2.पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी जगह परशुराम ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी और इसी स्थान पर उन्होंने अपना फरसा जमीन पर गाड़ा था। बताया जाता है कि इस फरसे का ऊपरी हिस्सा शिव जी के त्रिशूल के समान लगता है।

3.एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार शिव जी ने शनि देव से नाराज होकर उन पर त्रिशूल से वार किया था। उस दौरान त्रिशूल इस मंदिर की पहाड़ी पर आकर गिरा था। जिसमें त्रिशूल का एक हिस्सा जमीन के नीचे धंस गया। जबकि बाकी का हिस्सा ऊपर रह गया।

4.भगवान शिव का ये त्रिशूल इतना चमत्कारिक है कि इसके दर्शन मात्र से ही भक्तों के कष्ट दूर हो जाते हैं। शिव जी का ये त्रिशूल जमीन में कितनी गहराई तक धंसा हुआ है इस बात का पता अभी तक कोई नहीं लगा सका है।

5.त्रिशूल की खासियत यह है कि ये कई वर्षों से यहां खुले आसमान के नीचे होने के बावजूद जस का तस बना हुआ है। इस पर बारिश, हवा एवं धूप आदि का कोई असर नहीं पड़ता है। इस पर कभी जंग नहीं लगती है।

6.बाबा टांगीनाश का ये मंदिर घने जंगलों के बीच में है। यहां लगभग 60 शिवलिंग है। इसके अलावा महिषासुर मर्दिनी, मां लक्ष्मी, गणेश जी, विष्णु जी एवं सूर्य देव समेत अन्य देवी—देवताओं की भी मूर्तियां हैं।

8.इस मंदिर में मौजूद शिव जी का त्रिशूल एक और मायने में खास है। इसके तहत ये त्रिशूल देश में मौजूद तमाम शिव मंदिरों में रखें त्रिशूलों में से सबसे बड़ा है। इसकी गहराई का पता अभी तक नहीं लगाया जा सका है।

9.लोगों का मानना है कि भगवान शिव यहां त्रिशूल के रूप में साक्षात वास करते हैं। इसीलिए इस मंदिर में आने वाले सभी भक्तों के कष्ट दूर होते हैं।

10.एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार त्रेता युग में जब देवी सीता के स्वयंबर में श्रीराम ने धनुष तोड़ा था तब परशुराम बहुत क्रोधित हो गए थे। गुस्से में आकर इस मंदिर में उन्होंने अपना फरसा जमीन में गाड़ दिया था। हालांकि बाद में उन्हें सच का पता चलने पर उन्हें बहुत अफसोस हुआ था।