
ये एक मंत्र आपको दिलाएगा सफलता, ऐसे करें विश्वकर्मा की पूजा
नई दिल्ली। आज पूरे देश में विश्वकर्मा पूजा बड़े उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। विश्वकर्मा को हिंदू धर्म में पूरी दुनिया का सर्वप्रथम रचयिता माना जाता है। उन्हें पूरे संसार का सबसे पहला इंजीनियर माना जाता है। उनकी कृपा से ही कार्यक्षेत्र में कामयाबी मिलती है। तो क्या है पूजन का शुभ मुहूर्त और किस तरह करें नियम आइए जानते हैं।
1.विश्वकर्मा पूजा के दिन कार्यालयों एवं फैक्टरियों में उनकी पूजा की जाती है। माना जाता है कि उनकी आराधना से बिजनेस अच्छा चलने लगता है और सारी नकारात्मकताएं दूर हो जाती हैं।
2.इस दिन मशीनों की खासतौर पर पूजा की जाती है, क्योंकि इंजीनियरिंग में इसका विशेष महत्व होता है। आज के दिन कलपुर्जों की सफाई करके उनकी पूजा की जाती है।
3.विश्वकर्मा की पूजा के लिए इस बार शुभ मुहूर्त सुबह से दोपहर 12 बजकर 54 मिनट तक है। बेहतर फल पाने के लिए पहले विष्णु भगवान की पूजा करें, इसके बाद मशीनों में कुमकुम लगाकर पीले फूल चढ़ाएं।
4.व्यापार में तरक्की के लिए आज के दिन घर व दुकान के आंगन में आठ फूल रखकर कमल की आकृति बनाएं। अब इसमें सात तरह के अनाज रखें। अब विश्वकर्मा के पूजन के बाद वहां से सिंदूर लेकर इन पर चढ़ाएं। पूजन के आखिरी में इन चीजों को एक सफेद कपड़े में लपेटकर अपनी दुकान व फैक्ट्री में रख दें। इससे बिजनेस जमकर चलेगा।
5.विश्वकर्मा भगवान को प्रसन्न करने के लिए इस दिन यज्ञ करना भी शुभ मान जाता है। यदि आप विवाहित हैं तो अपनी पत्नी के साथ जरूर पूजा करें। इसे मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होंगी। पूजन के लिए सबसे पहले भगवान को तिलक लगाएं एवं अक्षत चढ़ाएं। साथ ही हाथ में जल लेकर संकल्प लें।
6.पूजन के दौरान भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करते हुए, ओम आधार शक्तपे नम: और ओम् कूमयि नम:, ओम अनन्तम नम:, पृथिव्यै नम: मंत्र का 11, 21, 51 व 108 बार जाप करें। ऐसा करने से विश्वकर्मा भगवान की आप पर कृपा होगी।
7.विश्वकर्मा की पूजा के समय भोग में बूंदी के लड्डू एवं मावा चढ़ाना अच्छा माना जाता है। इससे भगवान प्रसन्न होंगे, साथ ही मिठाई की तरह आपके जीवन में भी मिठास घुल जाएगी। आपके काम बनने लगेंगे और धन की प्राप्ति होगी।
8.हिंदू धर्म के अनुसार विश्वकर्मा भगवान को सर्वश्रेष्ठ शिल्पकार मानने की वजह यह है कि वो विष्णु और ब्रम्ह देव के अंग हैं। बताया जाता है कि उनकी उत्पत्ति ब्रम्ह देव की कृपा से हुई है। क्योंकि वे ब्रम्ह देव के पुत्र के बेटे हैं।
9.ब्रम्हा के पुत्र का नाम "धर्म" था। जिनका विवाह "वस्तु" से हुआ था। दोनों ही शिल्पशास्त्र में निपुण थे। तभी उनके पुत्र विश्वकर्मा में भी शिल्पकारी का गुण जन्मजात आ गया। बाद में वे अपनी इस वास्तुकला के दम पर पूरे संसार के लिए गुरू बन गए।
Published on:
17 Sept 2018 10:48 am
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