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“जली को आग कहते हैं” से “अबे खामोश” तक शत्रुघ्न सिन्हा के ये हैं 10 दमदार डायलॉग

खास अंदाज वाले शत्रुघ्न सिन्हा के डायलॉग

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नई दिल्ली। बॉलीवुड से राजनीति तक अपना लोहा मनवाने वाले शत्रुघ्न सिन्हा(shatrughan sinha birthday) आज 73 साल के हो गए हैं। 9 दिसंबर 1945 बिहार में जन्‍में शत्रुघ्‍न को लोग बिहारी बाबू नाम के नाम से भी जानते हैं। शत्रुघ्न का नाम लेने पर सबसे ज्यादा याद उनके डायलॉग आते हैं। शत्रुघ्‍न के कई ऐसे डायलॉग हैं जिन्हें सुनने के बाद पब्लिक सिनेमाघर में सिंटियां बजाने लगती थी। आज बिहारी बाबू के जन्म दिन पर हम आपको उनके दल सबसे दमदार डायलॉग बताने जा रहे हैं।

1- शत्रुघ्न सिन्हा का सबसे जोरदार डायलॉग था, “अबे खामोश”। वे ज्यादातर हर फिल्म में इस डायलॉग को बोलते थे।

2- अमीरों से गरीबों की हड्डियां तो चबाई जा सकती हैं, उनके घर की रोटियां नहीं। फिल्म- हमसे न टकराना (1990)

3- अपनी लाशों से हम तारीखें आबाद रखें, वो लड़ाई हो अंग्रेज जिससे याद रखे। फिल्म- क्रांति (1981)

4- जिसके सर पर तुझ जैसे दोस्त की दोस्ती का साया हो, उसके लिए बनकर आई मौत, उसके दुश्मन की मौत बन जाती है।फिल्म- नसीब (1981)

5- जली को आग कहते हैं, बुझी को राख कहते हैं, जिस राख से बारूद बने, उसे विश्वनाथ करते हैं।फिल्म- विश्वनाथ (1978)

6- आज के जमाने में तो बेईमानी ही एक ऐसा धंधा रह गया है, जो पूरी ईमानदारी के साथ किया जाता है।फिल्म- कालीचरण (1976)

7- जब दो शेर आमने-सामने खड़े हों, तो भेड़िये उनके आस-पास नहीं रहते। फिल्म- बेताज बादशाह (1994)

8- पहली गलती माफ कर देता हूं... दूसरी बर्दाश्त नहीं करता। फिल्म- असली- नकली (1986)

9- आज कल जो जितना ज्यादा नमक खाता है, उतनी ही ज्यादा नमक ***** करता है।फिल्म- असली- नकली (1986)

10- मैं तेरी इतनी बोटियां करूंगा कि आज गांव का कोई भी कुत्ता भूखा नहीं सोएगा।फिल्म- जीने नहीं दूंगा (1984)