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कुल खर्च बढ़ने के हैं आसार
उन्होंने आगे कहा, “आगामी लोकसभा चुनाव में अनिश्चित्तता को देखते हुए लग रहा है कि भारतीय जनता पार्टी व अन्य विपक्षी दलों में काफी कम अंतर होगा। एेसे में कुल खर्च के भी बढ़ने के आसार हैं।” बता दें कि बीते कर्इ सालों से मिलन वैष्णव भारतीय चुनावों की फंडिंग पर एनलिसिस के लिए जाने जाते हैं। अपने लेख में वैष्णव ने लिखा कि एक तरफ जहां अागामी लोकसभा चुनाव को लेकर कयासों का दौर शुरू हो गया है। लोकसभा चुनाव 2014 में कुल 5 अरब डाॅलर (करीब 35,592 करोड़ रुपए) खर्च को देखते हुए वैष्णव ने कहा कि ये नहीं कहा जा सकता इस बार कुल खर्च दोगुना होगा।
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पार्टियों को दिए जाने वाले रकम को लेकर नहीं है पारदर्शिता
वैष्णव ने कहा, “भारतीय चुनावों की अत्यधिक लागत भारतीय राजनीतिक अर्थव्यवस्था का एक कार्डिनल तथ्य बन गया है, जो व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है और अफसोसजनक है। इसमें राजनेता और उनके दाता भी शामिल हैं। लेकिन यह केवल एक व्यक्ति का ध्यान खींचने वाली सामग्री नहीं है, बल्कि यह उस तरीके का है जहां केवल पैसा बहता है।” उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि पार्टयों के कन्ट्रीब्युशन को लेकर बिल्कुल भी पारदर्शिता नहीं है।
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पार्टियों की फंडिंग के बारे में कोर्इ जानकारी नहीं
पारदर्शिता को लेकर उन्होंने कहा कि यह पता लगाना लगभग नामुमकिन है कि राजनीतिक पार्टियों को किसने डोनेशन दी है। यह बिल्कुल ही मुश्किल काम है कि आप पता लगा लें कि अपने कैंपेन के लिए पाॅलिटिकल पार्टियां कहां से फंड लेकर आती हैं। बहुत कम ही लोग अपने द्वारा डोनेट किए गए पैसे के बारे में जानकारी देने के इच्छुक हैं। मौजूदा सरकार द्वारा इलेक्टोरल बाॅन्ड ने भी कोर्इ मदद नहीं की है। पूर सिस्टम में पारदर्शिता की जरूरत है।
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