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शिक्षा

बच्चों को ऐसे करें मोबाइल से दूर और लाएं किताबों के करीब

एक सर्वे में टीचर्स ने माना कि क्लास में डिजिटल टेक्नोलॉजी बच्चों का ध्यान भटका रही है।

Jul 22, 2018 / 10:18 am

अमनप्रीत कौर

kids with mobile

kids with mobile

बच्चों में सोशल नेटवर्किंग, गैजेट्स और तकनीक के लिए दीवानगी ने पैरेंट्स को डरा दिया है। डर इस बात का कि कहीं बच्चे इस वर्चुअल दुनिया में इतना न खो जाएं कि जिंदगी के संघर्ष और परेशानियों का सामना न कर पाएं। लेखिका एना हुमायूं की इस मुद्दे पर एक रिपोर्ट…
हमारी पीढ़ी के टीनएजर्स और युवाओं को यह समझना होगा कि तकनीक से उत्पन्न लतों पर नियंत्रण रखना भी उतना ही जरूरी है जितना कि अच्छी डिजिटल सिटीजनशिप को बढ़ावा देना। मोबाइल और इंटरनेट से चिपके रहने की आदत हमारे बच्चों में किस हद तक घर कर गई है। इस डर का प्रतिबिंब उस समय देखने को मिला जब जनवरी में एप्पल कंपनी के दो शेयर होल्डर ग्रुप ने बच्चों में आईफोन की लत को देखते हुए इस ओर ध्यान देने को कहा। गूगल के हाल के डवलपर प्रोग्राम कॉन्फे्रंस में स्मार्ट फोन और तकनीक के बेहतर ढंग से नियंत्रित उपयोग पर जोर दिया।
भटकाने के टूल बदले :

बीते 17 सालों से मैं समय प्रबंधन और सामान्य कार्य कौशल पर स्कूली बच्चों के साथ मिलकर काम कर रही हूं। तब बच्चे मुझे बताते थे कि उनके काम (होमवर्क, घर के सामान्य काम, प्रोजेक्ट आदि) में बाधा डालने वालों में उनके भाई-बहन, पालतू जानवर और दिन में सोने जैसे सामान्य कारण थे। आज हैरान हो जाती हूं जब वो बताते हैं कि अब वो इंस्टाग्राम, स्नैपचैट, फोर्टनाइट, यू-ट्यूब, नेटफ्लिक्स और सामान्य मैसेजिंग एप्स के कारण अपने काम पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। वर्तमान में स्कूल के अध्यापक कक्षा में तकनीक का उपयोग करते हैं जिसमें प्रत्येक बच्चे के पास अपने स्वयं के डिवाइस होते हैं। लेकिन यही तकनीक उनके लिए तब चुनौती बन जाती है जब यू-ट्यूब और स्नैपचैट की लत से ग्रसित छात्रों को इस पर अपना होमवर्क या क्लास वर्क करना पड़ता है। ये टैबलेट्स और कम्प्यूटर्स उन्हें एकाग्रचित होने ही नहीं देते। नतीजा छात्र-छात्राएं कक्षा में अध्यापक के साथ सीधे संवाद और द्वि-चरणीय संचार के बावजूद कुछ भी नहीं सीख पाते। बच्चों की मौलिक कक्षाओं को गैजेट्स और तकनीक का अखाड़ा बना दिया है। बच्चे काम अधिक प्रभावी ढंग से करने की आदत डालने में विफल हो रहे हैं। इन सबसे केवल अभिभावक ही नहीं युवा भी परेशान हैं। स्व: नियंत्रण न कर पाने से निराश होकर गुस्से और फ्रस्ट्रेशन का सामना करते हैं। ऐसा होना स्वभाविक भी है क्योंकि आज युवाओं को इंटरनेट और डिजिटल वर्चुअल दुनिया उनके लक्ष्य से भटका रहे हैं।
इनसे बनेगी बात:

बच्चों से इस संबंध में बहस करने की बजाय इस बात पर फोकस करें कि इन विकृतियों से कैसे निपटा जाए। इसमें सबसे अच्छा तरीका सहानुभूति, करुणा और सहयोग का तालमेल है। तकनीक और गैजेट्स की लत से अपने बच्चों को बाहर लाने के लिए पहला कदम है कि अपने बच्चों को प्रोत्साहित करें। अक्सर देखा गया है कि किसी भी तरह के व्यवहार में बदलाव लाने के लिए व्यक्ति का स्व:प्रेरित होना बेहद जरूरी है। अपने बच्चों को कामों का विभाजन कर एक बार में एक काम करने के लिए प्रेरित करें। इससे उन्हें अपना काम अधिक तेजी से करने में मदद मिलती है। इस तकनीक को पोमोदोरो कहते हैं जिसमें २५ मिनट किसी एक काम पर ध्यान केंद्रित किया जाता है और ५ मिनट का ब्रेक लिया जाता है। कई बार ध्यान केंद्रित करने के चक्कर में हम इतना ज्यादा नीरस हो जातें हैं कि हमारी एकाग्रता ही भंग हो जाती है। जरूरी है कि हम इसे अधिक मनोरंजक और हल्का रखें। हमारे अपने समर्थन और प्रयास के बिना बच्चे अपनी आदतों में बदलाव नहीं ला सकते। बच्चों को सकारात्मक माहौल दें और अवसरों को सहजता से आने दें।
अमरीकी लेखिका एना हुमायूं किशोरों के मुद्दों पर कई किताबें लिख चुकी हैं, 17 सालों से स्कूली बच्चों के साथ काम कर रही हैं और उनकी डिजिटल लाइफ पर रिसर्च की है। मिडिल और हाइ स्कूल के छात्रों से बातचीत में एना को पता चला कि अधिकतर बच्चे सप्ताह में सात से दस घंटे का खाली समय अपने लिए चाहते हैं। सबसे अच्छी बात – इस समय का उपयोग वे अपनी हॉबी, स्पोट्र्स और नींद पूरी करने के लिए करना चाहते हैं।

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