scriptUttar Pradesh Assembly Elections 2022: भीषण शीतलहरी में पूर्वांचल हुआ गर्म, दो मुख्यमंत्रियों के चुनावी मैदान में उतरने की आस ने बढ़ाई सरगर्मी | UP Election 2022 Two Chief Minister Yogi Adityanath and Akhilesh Yadav contest from Purvanchal | Patrika News
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Uttar Pradesh Assembly Elections 2022: भीषण शीतलहरी में पूर्वांचल हुआ गर्म, दो मुख्यमंत्रियों के चुनावी मैदान में उतरने की आस ने बढ़ाई सरगर्मी

Uttar Pradesh Assembly Elections 2022 की गर्मी अब शीतलहर पर हावी होने लगी है। खास तौर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पूर्व मुख्यंमंत्री अखिलेश यादव के पूर्वांचल से उम्मीदवार होने की चर्चाओं ने माहौल बेहद गर्म हो गया है। जिस रणनीति के तहत भाजपा ने योगी आदित्यनाथ को अयोध्या की बजाय गोरखपुर भेजा फिर अखिलेश यादव पर चुनाव में उतरने का दबाव बनाया। उसके बाद अखिलेश का आजमगढ़ से चुनाव लड़ने के संकेत ने सियासी फि़ज़ा को तल्ख कर दिया है।

वाराणसीJan 20, 2022 / 12:58 pm

Ajay Chaturvedi

अखिलेश यादव

अखिलेश यादव

वाराणसी. ठिठुरन और भिषण शीतलहरी के दौर में भी Uttar Pradesh Assembly elections 2022 ने माहौल गर्म कर दिया है। खास तौर पर भाजपा ने जिस रणनीति के तहत मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को गोरखपुर से टिकट दिया। फिर पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव पर विधानसभा चुनाव लड़ने की चुनौती दी और अखिलेश ने उस चुनौती को स्वीकार कर आजमगढ़ से चुनाव लड़ने के संकेत दिए। उसके बाद से सियासी पारा तेजी से ऊपर चढा है। भाजपा और सपा कार्यकर्ताओं में जोश देखते बन रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इस बार पूर्वांचल की राजनीति कहीं ज्यादा हॉट होने की उम्मीद है।
पूर्वांचल को साधने के लिए भाजपा ने योगी को भेजा गोरखपुर

चुनाव की घोषणा होने के साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अयोध्या से चुनाव लड़ने की चर्चाएं आम हो गईं। अयोध्या में योगी के चुनाव लड़ने की तैयारियां भी तेज हो गईं।लेकिन तभी भाजपा थिंक टैंक ने योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर का टिकट थमा दिया। इसके पीछे की रणनीति साफ थी कि भारतीय जनता पार्टी, पूर्वांचल के अपने समीकरण को किसी भी सूरत में बिगड़ने नहीं देना चाहती थी। वैसे भी योगी और केशव मौर्या को छोड़ कर पूर्वांचल में इतना बड़ा चेहरा भी नहीं था। फिर बतौर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर से लेकर वाराणसी और प्रयागराज तक में जो काम किए उसे भी योगी के रहते ही और अच्छी तरह से भुनाया जा सकता था।
केशव मौर्या नें अखिलेश को दी चुनौती
योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर से प्रत्याशी होने के बाद भाजपा और खास तौर पर डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने सपा अध्यक्ष को भी विधानसभा चुनाव लड़ने की चुनौती दे डाली। बता दें कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की ही तरह पांच साल तक एमएलसी ही रहे। ऐसे में अखिलेश ने चुनौती को न केवल स्वीकार किया बल्कि पूर्वांचल के सबसे गर्म क्षेत्र आजमगढ़ से चुनाव मैदान में उतरने के संकेत दे दिए।
आखिर आजमगढ़ के संकेत ही क्यों दिए अखिलेश ने
दरअसल ये तो तय माना जाता है कि यूपी की सत्ता हासिल करने के लिए पूर्वांचल को साधना बेहद जरूरी है। फिर जब योगी आदित्यनाथ अपने सुरक्षित क्षेत्र गोरखपुर गए तो अखिलेश को भी आजमगढ़ ज्यादा मुफीद लगा। वर्तमान में अखिलेश आजमगढ से सांसद भी हैं। इसके अलावा पूर्वांचल की सीटों के लिए अब तक घोषित प्रत्याशियों में योगी के अलावा और कोई बड़ा नेता भी नही है। ऐसे में सपा अध्यक्ष अखिलेश का पूर्वांचल की किसी सीट से न लड़ना बीजेपी को खुला छोड़ने जैसा था। लिहाजा आजमगढ को ही अखिलेश ने प्राथमिकता देते हुए सरगर्मी बडा दी।
सपा और अखिलेश के लिए यूपी में सबसे सुरक्षित जगह है आजमगढ़
वैसे भी योगी आदित्यनाथ हों या अखिलेश यादव, दोनों ही अपने राजनीतिक जीवन में अब तक विधानसभा का चुनाव नहीं लड़े हैं। ऐसे में दोनों को सुरक्षित सीट की दरकार तो है ही। अगगर योगी अपने गढ में बतौर सांसद अजेय हैं तो आजमगढ अखिलेश व मुलायम सिंह के लिए सुरक्षित स्थान है। इसकी सबसे बड़ी वजह सपा के परंपरागत वोटबैंक है। आजमगढ़ शुरू से ही सपा के वाईएम फैक्टर (यादव-मुस्लिम) वोट बैंक का गढ रहा है। आजमगढ की 10 विधआनसभा सीटों में से आधी सीटें सपा के कब्जे में हैं। ऐसे में इससे सुरक्षित सीट हो नहीं सकती।
क्या है वोट का गणित
बता दें कि जब 2019 में अखिलेश यादव आजमगढ़ से सांसद बने तब उन्हें छह लाख 21 हजार मत मिले थे, यानी 34 फीसद। आजमगढ़ की मुबारकपुर, सदर और गोपालपुर सीट अखिलेश के लिए सर्वथा उपयुक्त हैं। वजह, सामाजिक ताना-बाना है। जातीय समीकरण के लिहाज से मुस्लिम, यादव, राजभर, चौहान मिलकर सपा को फायदा पहुंचाते रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में ही अखिलेश को मुबारकपुर से एक लाख 36 हजार, सदर से एक लाख 29 हजार मत मिले थे। सदर सीट तो 1996 से सपा के कब्जे में है।
पश्चिम न जाने की वजह
दरअसल 2017 का विधानसभा चुनाव रहा हो या 2019 का लोकसभा चुनाव, दोनों में ही समाजवादियों के गढ़ कहे जाने वाले इटावा, मैनपुरी, फिरोजाबाद में सपा के उसकी अपेक्षा के अनुरूप परिणाम का न आना भी अखिलेश यादव के पूर्वांचल की ओर रुख करने का बड़ा कारण है।
जातीय गठबंधन भी पूर्वांचल में ज्यादा मजबूत
सपा ने जिन जाति आधारित क्षत्रपों संग गठबंधन किया या उनके बड़े नेताओं को पार्टी में शामिल कराया उन सभी का वर्चस्व पूर्वांचल में ही ज्यादा है। चाहे वो ओम प्रकाश राजभर हों या दारा सिंह चौहान अथवा स्वामी प्रसाद मौर्य। आजमगढ़ से चुनाव लड़ने की सूरत में इन तीन क्षत्रपों का भी असर पड़ेगा। एक तरह से कहें तो यादव, मुस्लिम, राजभर और चौहान की चौकड़ी अखिलेश की जीत में सहायक हो सकते हैं।

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