हड़ताल ने सबकुछ बदल दिया : अवमानना याचिका के जरिए मुकदमेबाजी का दूसरा दौर शुरू हुआ तो रोडवेज प्रशासन हरकत में आया और 552 परिचालकों को नौकरी से बाहर करने का निर्णय किया। प्रभावित परिचालक हाईकोर्ट पहुंचे तो खण्डपीठ ने खाली पदों पर समायोजित करने को कहा। इसी बीच कोर्ट ने रोडवेज के प्रबन्ध निदेशक से खाली पद भरने की योजना पूछी तो शपथपत्र आया कि 400 करोड़ रुपए का घाटा है इसलिए भर्तियां नहीं की जाएंगी।
लेकिन, अब रोडवेज कर्मियों ने हड़ताल की तो प्रबन्धन ने खाली पद जल्द भरने का लिखित समझौता कर लिया। इससे रोडवेज प्रबन्धन फंस गया और कोर्ट ने इस समझौते को ध्यान में रखते हुए 552 परिचालकों को नौकरी से निकालने का आदेश रद्द कर दिया। कोर्ट ने यह भी माना कि चयन के 8 साल बाद नौकरी से निकालना ठीक नहीं है। यह था कर्मियों का तर्क: अधिवक्ता अनूप ढण्ड ने 552 परिचालकों की ओर से कोर्ट को बताया कि अब इनमें से कई नियुक्ति के लिए निर्धारित आयु पार करने के कारण पुन: आवेदन के लिए पात्र नहीं रहे हैं। ऐसे में नौकरी से हटाना उचित नहीं है। गौरतलब है कि पहले दौर की मुकदमेबाजी के कारण रोडवेज को 461 नए अभ्यर्थियों का चयन करना पड़ा था।