गांव वालों का कहना है कि शिवाला की फसल बर्वाद हो गई है। एक बीघा की फसल से 16 सौ रुपए की आमदनी होती है लेकिन वह बाढ़ के पानी मे डूबकर बर्बाद हो चुकी है। गांव में रहने के लिए भी आफत बनी हुई है। गांव में अधिकारियों की तरफ से अभी एक माह में केवल एक हफ्ते का राशन मिला। वह भी बड़े परिवारों के लिए केवल तीन दिन ही चल सका है।
आस-पास कोई भी बाढ़ राहत चौकी नहीं
गांव की महिलाओं का कहना है कि पक्के मकान होते तो बाढ़ आने से हम लोग उनकी छतों पर गुजरा कर लेते लेकिन वह भी हमारे पास नहीं हैं। आस-पास कोई भी बाढ़ राहत चौकी नहीं बनाई गई जिसमें जाकर हम लोग खाना खा सके या अपने बच्चों को बाढ़ से निकालकर उस स्थान पर रहने के लिए भेजा जा सके। कम से कम उनको इस आफत से दूर रखा जा सके। अभी तक अधिकारियों का वहीं तक आना हुआ है जहां पर बाढ़ का पानी नहीं है लेकिन गांव तक आने की हिम्मत नहीं जुटा सके। जिससे उन्हें भी पता चल सके कि हम गांव वालों का जीवन कितना नरकीय बना हुआ है।
जिस तरफ नजर डालो पानी ही पानी
जानवरों के लिए भी चारा की समस्या खड़ी हो गई है क्योंकि जिस तरफ नजर डालो पानी ही पानी दिखाई दे रहा है। जिस प्रकार से पानी लगातार बढ़ रहा है उससे 2010 जैसे हालात हो जाएंगे। लोगों के पास अधिकारी अपनी मदद भी नहीं पहुंचा पाएंगे क्योंकि बाढ़ अपना बिकराल रूप लेती जा रही है। दूसरी तरफ गंगा ने अभी खतरे के निशान को पार नहीं किया फिर भी हालत खराब हो गए हैं।