माना जाता है कि इस दिन भक्त महादेव की पूजा अर्चना कर उनसे मनोकामना पूर्ति के लिए कृपा करने की मांग करते हैं। भगवान शिवजी को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष का व्रत बहुत उत्तम माना जाता है, वहीं इस बार यह व्रत सोमवार को पड़ रहा है, जो कि भगवान शिव का ही दिन है, इसलिए इसका महत्व और अधिक बढ़ गया है, वहीं ये अत्यंत शुभ भी माना जा रहा है। तो चलिए समझते हैं हिंदू पांचांग के नौवें माह मार्गशीर्ष में शुक्ल पक्ष के प्रदोष व्रत की पूजा विधि, सामग्री व महत्व के बारे में…
ज्ञात हो कि किसी भी प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक की जाती है। ऐसे में इस दिन सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। इसके पश्चात इस दिन हल्के लाल या गुलाबी रंग का वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है। वहीं चांदी या तांबे के लोटे से शुद्ध शहद एक धारा के साथ शिवलिंग पर इस दिन अर्पित करनी चाहिए। जिसके बाद शुद्ध जल की धारा से अभिषेक करते हुए ॐ सर्वसिद्धि प्रदाये नमः मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए। इसके साथ ही इस दिन महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी अवश्य ही करना चाहिए।
सोम प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा के लिए गाय का दूध, मंदार पुष्प, पंच फल, कपूर, धूप, पंच मेवा, पंच रस, गन्ने का रस, बेलपत्र, इत्र, गंध रोली, पंच मिष्ठान्न, जौ की बालें, मौली जनेऊ, दही, देशी घी, शहद, दीप, गंगा जल, धतूरा, भांग, बेर, आदि आम्र मंजरी, रत्न, दक्षिणा, चंदन और माता पार्वती के श्रृंगार की पूरी सामग्री आदि होना आवश्यक है।
प्रदोष व्रत का महत्व : Importance of Pradosh Vrat
हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत को बहुत शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन पूरी निष्ठा से भगवान शिव की अराधना करने वाले जातक के समस्त कष्ट दूर होते हैं और मृत्यु के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुराणों के अनुसार एक प्रदोष व्रत करने का फल दो गायों को दान करने के समान होता है। इस व्रत के महत्व को वेदों के महाज्ञानी सूतजी ने गंगा नदी के तट पर शौनकादि ऋषियों को बताया था। उन्होंने कहा था कि कलयुग में जब अधर्म का बोलबाला रहेगा, लोग धर्म के रास्ते को छोड़ अन्याय की राह पर जा रहे होंगे, उस समय प्रदोष व्रत एक माध्यम बनेगा। जिसके द्वारा लोग शिव की अराधना कर अपने पापों का प्रायश्चित कर सकेंगे और अपने सारे कष्टों को दूर कर सकेंगे।