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फिरोजाबाद

धनगर प्रमाण पत्र को लेकर फिर फंसेगा पेंच, पीएमओ में की गई यह शिकायत जिसका लिया गया संज्ञान

— पद एवं अधिकारों का दुरुपयोग कर संवैधानिक व्यवस्था के विरुद्ध आदेश पारित कर दलितों के अधिकारों का हनन कराने वाले उप्र सरकार के प्रमुख सचिव समाज कल्याण की की गई शिकायत।

फिरोजाबादFeb 01, 2019 / 11:59 am

अमित शर्मा

modi yogi

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फिरोजाबाद। धनगर प्रमाण पत्र बनवाने की घोषणा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा किए अभी कुछ ही दिन बीते होंगे कि एक बार फिर धनगर प्रमाण पत्र को लेकर पेंच फंसता नजर आ रहा है। एक समाजसेवी ने पीएमओ को आॅनलाइन शिकायत भेजकर मामले का संज्ञान लिए जाने की मांग की। इस पर पीएमओ ने संज्ञान लेते हुए मामले की जांच को मुख्यमंत्री के सचिव को भेजी है।
ये की गई शिकायत
फिरोजाबाद के टूंडला निवासी प्रेमपाल सिंह चक पुत्र मुकन्दीलाल ने पीएमओ को भेजी आॅनलाइन शिकायत संख्या 60000190012901 में लिखा है कि पद एवं अधिकारों का दुरुपयोग कर संवैधानिक व्यवस्था के विरुद्ध आदेश पारित कर दलितों के अधिकारों का हनन कराने वाले उप्र सरकार के प्रमुख सचिव समाज कल्याण मनोज सिंह एवं राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग नई दिल्ली के तत्तकालीन पीएल पुनियां के विरुद्ध कार्रवाई की मांग की गई है।
संविधान का दिया हवाला
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341 के अन्तर्गत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए माननीय राष्ट्रपति द्बारा जारी किए गए अनुसूचित जातियों और जनजातियों आदेश 1950 एवं संशोधित आदेश अधिनियम 1976 द्बारा उप्र के अन्तर्गत अधिसूचित की गई केन्द्रीय सूची के क्रमांक 27 पर हिंदी में धंगड़ और अंग्रेजी Dhangar दर्ज हैं लेकिन मनोज सिंह, प्रमुख सचिव उप्र शासन ने अपने पद एवं अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए साक्ष्यों को छिपाकर संवैधानिक व्यवस्था के विरुद्ध शासनादेश संख्या 207 सी.एम./26-3-2018 दिनांक 24 जनवरी 2019 को जारी कर दलितों के अधिकारों का हनन कराने कार्य किया है। जिसके बिंदु संख्या 3 में लिखा है कि सिविल रिट याचिका संख्या 40462/वर्ष 2009 -आल इंडिया धनगर समाज महासंघ एवं अन्य में माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के निर्णय दिनांक 14 मार्च 2012 में गड़रिया की दो उपजातियां धनगर (DHANGAR) एवं नीखर (NIKHAR) वर्गीकृत हैं जबकि उक्त आदेश में राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग नई दिल्ली को स्पष्ट करने का आदेश पारित किया था।
अधिकारों का किया दुरूपयोग
आयोग के अधिकारियों ने अपने पद एवं अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए साक्ष्यों को छिपाकर संवैधानिक व्यवस्था के विरुद्ध हिंदी में धंगड़ जाति के स्थान पर धनगर जाति दर्ज करने का आदेश उप्र सरकार को दिया था। आयोग के आदेश पर उप्र सरकार ने दिनांक 24 अक्टूबर 2013 धनगर जाति प्रमाण पत्र जारी करने का शासनादेश जारी कर दिया। जिसके बाद ओबीसी श्रेणी में आने वाले गड़रिया पाल बघेल समाज के लोगों ने अपनी मूल जाति को छिपाकर धनगर जाति प्रमाण पत्र जारी करा लिए और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित पदों पर आसीन हो गये हैं।
दोबार दिया ये आदेश
इसके बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग नई दिल्ली ने दिनांक 25 सितंबर 2017 को पुनः उप्र सरकार को आदेश दिया था कि हिंदी में धनगर के स्थान पर धंगड़ जाति प्रमाण पत्र जारी करने का शासनादेश जारी किया जाय । लेकिन प्रमुख सचिव मनोज सिंह ने आयोग के आदेश की अवहेलना करते हुए समाज कल्याण अनुभाग 3 के पटल से शासनादेश संख्या 453/26-3-2018 दिनांक 7 फरवरी 2018 को पुनः धनगर जाति प्रमाण पत्र जारी करने का आदेश पारित कर दिया था। इसके बाद 24 जनवरी 2019 को धनगर जाति के लोगों को अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र निर्गत करने हेतु स्पष्टीकरण आदेश जारी किया है। जिसका वर्णन पहले ही किया गया है उक्त स्पष्टीकरण आदेश के बिंदु संख्या 4 में लिखा है कि अशिक्षा एवं अज्ञानतावश पूर्व में जिन धनगर जाति के लोगों के किन्हीं अभिलेखों में धनगर जाति के स्थान पर संवैधानिक व्यवस्था के विपरीत गड़रिया आदि अंकित हो गया है और विभिन्न परिस्थितियों में गड़रिया अन्य पिछड़ा वर्ग का त्रुटिपूर्ण जाति प्रमाण पत्र निर्गत हो गया है को निरस्त/निष्प्रभावी मानते हुए पुनः धनगर जाति प्रमाण पत्र जारी किया जाय।
जांच पड़ताल करें
बिन्दु संख्या 5 में लिखा है कि सक्षम अधिकारियों को धनगर उपजाति की पहचान करने में कठिनाई हो तो धनगर और नीखर उपजातियों के बीच शादी संबंधों (रोटी-बेटी एवं हुक्का-पानी) के आधार पर जांच पड़ताल कर धनगर उपजाति के लोगों को अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र निर्गत करना सुनिश्चित करें। अन्यथा दन्डात्मक कार्यवाही की जायेगी। यानी कि गड़रिया पाल बघेल समाज के लोग ओबीसी या अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित दोनों श्रेणियों के पदों पर आसीन होते रहेंगे।
संसद को है अधिकार
नियमानुसार जाति या उपजातियों में संशोधन करने का अधिकार सिर्फ संसद को ही है और माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने भी जितेन्द्र बनाम स्टेट आफ यूपी एन्ड अदर के निर्णय दिनांक 2 जुलाई 2009 में स्पष्ट कहा है कि जातियों में संशोधन करने का अधिकार सिर्फ संसद को ही है लेकिन फिर भी जानबूझ ऐसा क्यों किया गया है क्या उक्त अधिकारियों ने किसी के दबाव में कार्य किया है या फिर गहरे भ्रष्टाचार में लिप्त हो कर ऐसा किया है। इसकी जांच पड़ताल होनी चाहिए आखिर ऐसा क्यों किया गया है। जिससे अनुसूचित जाति के लोगों के अधिकारों का हनन हो रहा है। अतः श्रीमान जी से प्रार्थना है कि उक्त प्रकरण की जांच कराकर दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की कृपा करें।

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