लगभग 300 अस्पताल ऐसे हैं, जिनका संचालन डॉक्टर के बजाय दूसरे लोग करते हैं। इन अस्पतालों में अपनी क्लिनिक चलाने वाले डॉक्टर ऑन कॉल प्रैक्टिस करते हैं। इस ऑनकाल व्यवस्था ने ही शहर में अवैध अस्पतालों का जाल मजबूत कर दिया। एक सीनियर डॉक्टर ने बताया कि तमाम ऐसे अस्पताल हैं जो रजिस्ट्रेशन के समय किसी डॉक्टर के नाम का इस्तेमाल करते हैं। कुछ दिन वह डॉक्टर 1 या 2 घंटे के लिए OPD में बैठ जाते हैं।
बाद में वह अस्पताल डॉक्टर के बजाय झोला छाप संचालित करने लगते हैं। किसी बड़े अस्पताल में फार्मासिस्ट रहे लोग ही ऐसे अस्पतालों में डॉक्टर बन जाते हैं। गंभीर मरीजों के इलाज से लेकर ऑपरेशन तक करने लगते हैं। अवैध रूप से संचालित ईशु अस्पताल में जब पुलिस के साथ स्वास्थ्य विभाग की टीम ने छापा मारा तो वहां जो व्यक्ति खुद को डॉक्टर बता रहा था। वह इसी तरह का था।
इन सब मामलों के उजागर होने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने नई गाइड लाइन जारी की। जिसमें यह स्पष्ट निर्देश दिया गया कि एक डॉक्टर का एक ही अस्पताल में रजिस्ट्रेशन मान्य होगा। अगर उनके नाम पर रजिस्ट्रेशन हो रहा है तो उन्हें इस बात का शपथ पत्र देना होगा कि वे उस अस्पताल में 1 साल तक प्रैक्टिस करेंगे।
जांच में अगर दूसरे अस्पताल के डॉक्टरों के प्रैक्टिस की बात सामने आई तो मान्यता निरस्त होगी। अस्पताल प्रबंधन उसी डॉक्टर का बोर्ड लगा सकेंगे, जिसके नाम पर उस अस्पताल का रजिस्ट्रेशन होगा। इन नए नियम ने अस्पताल संचालकों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
इस संबंध में CMO डॉ. आशुतोष दूबे ने बताया कि अवैध अस्पतालों पर रोक लगाने के लिए ही नियमों में सख्ती की गई है। इस नियम का कड़ाई से पालन कराया जाएगा। जिससे कि गोरखपुर और आसपास के मरीजों को बेहतर इलाज की सुविधा मिले और उनके साथ धोखाधड़ी रुके। रजिस्टर्ड डॉक्टर इस व्यवस्था में सहयोग करेंगे।
अभी जो गाइड लाइन है उसके अनुसार अस्पतालों के रजिस्ट्रेशन या रिन्युअल के लिए विभागीय पोर्टल पर 30 अप्रैल तक आवेदन करना है। इसके बाद 1 मई से आवेदन पत्रों के सत्यापन के बाद पंजीकरण या नवीनीकरण की प्रक्रिया शुरू होगी। यह प्रक्रिया करीब 20 मई तक चलेगी। जिले में छोटे-बड़े मिलाकर करीब 800 अस्पताल हैं, जिनका रिन्युअल होना है। CMO ऑफिस के मुताबिक हर दिन 20-25 आवेदन आ रहे हैं।