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गोरखपुर

‘हाई फ्रिक्वेंसी ऑक्सीजन’ के जरिये कोरोना से जंग, जानिये क्या है और कैसे करती है काम

डॉक्टरों कहते हैं मिनी वेंटिलेटर।

गोरखपुरJul 30, 2020 / 01:52 pm

रफतउद्दीन फरीद

Preventive liner workers getting infected, taking precautions while treating patients suspected of corona ...

हो रहे फ्रंट लाइनर वर्कर्स संक्रमित, कोरोना के संदिग्ध मरीजों के उपचार के दौरान बरत रहे सावधानी …

गोरखपुर. कोरोना संक्रमितों के लिये ऑक्सीजन के इस्तेमाल में एचओएफ का विकल्प काफी राहत भरा है। एचओएफ मरीज को हर मिनट 60 लीटर शुद्ध ऑक्सीजन मुहैया करा रही है। वेंटिलेटर से भी इसी गति से ऑक्सीजन मिलता है। यही वजह है कि डॉक्टरों ने इसे मिनी वेंटिलेटर का दर्जा दिया है। गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल काॅलेज में फिलहाल चार एचओएफ मशीनें मौजूद हैं, जो इलाज के लिये काम में लायी जा रही हैं। मेडिकल काॅलेज प्रशासन इस कोशिश में है कि उसे संक्रमितों के इलाज के लिये और मशीनें मिलें, इसके 15 मशीनों की मांग भी की गयी है।


सांस लेेने में तकलीफ कोरोना संक्रमण का लक्षण भी है और संक्रमित हो जाने के बाद यह मरीज के लिये बड़ी समस्या भी। संक्रमित के खून में ऑक्सीजन की मात्रा इतनी तेजी से कम होती है कि सांस लेेन में दिक्कत के चलते जान जाने का खतरा बना रहता है। इसके लिये मरीज को ऑक्सीजन देना पड़ता है। हालांकि ऐसे मरीजों के लिये एचओएफ का इस्तेमाल भी बेहद कारगर आैर असरकारक है। एचओएफ यानि हार्इ फ्रिक्वेंसी ऑक्सीजन जिससे मरीज को हर मिनट 60 लीटर शुद्घ ऑक्सीजन मिलती है। कोरोना संक्रमण होने पर संक्रिमत के खून में आक्सीजन की मात्रा इतनी तेजी से घटती है कि सांस लेने में तकलीफ होती है। यह संक्रमण के लक्षणों में से भी एक है। ऐसे में संक्रमित मरीजों के इलाज के लिये ऑक्सीजन बेहद जरूरी है। बीआरडी मेडिकल कालेज में चार एचएफओ पहले से मौजूद हैं जिन्हें कोरोना मरीजों के इलाज में इस्तेमाल किया जा रहा है। डॉ. राजकिशोर बताते हैं कि देश में चुनिंदा संस्थानों के पास ही एचओएफ मौजूद है। कमिश्नर जयंत नार्लिकर ने बीआरडी में में चार एचएफओ मंगवाए हैं। हालांकि अभी और 15 की मांग की गई है।


कैसे काम करता है एचओएफ

डाॅ. राजकिशोर ने बताया कि एचओएफ में नोजल पाइप के जरिए ऑक्सीजन दिया जाता है। ह्यूमेडिफायर के चलते ऑक्सीजन में नमी रहती है। इससे मरीज की नाक की धमनियां नहीं फटती। बीआरडी के एचओडी टीबी एंड चेस्ट डॉ. अश्वनी मिश्रा ने बताया कि कोरोना संक्रमण फेफड़ों पर तेजी से असर करता है, जिससे फेफड़े के अंदर की परत पर सूजन होती है और धमनियां पूरी तरह काम नहीं कर पाती हैं और खून में ऑक्सीजन की मात्रा कम होने लगती है। इसे एसपीओ-टू के जरिये मापा जाता है। अगर यह 96 प्रतिशत से कम हुआ तो मरीज के लिये खतरा बढ़ जाता है। 90 से कम होने पर सांस लेने में तकलीफ व कमजोरी आैर 80 होने पर उसके सोचने समझने की क्षमता पर असर होने लगता है आैर मरीज अचेत होने लगता है। कोमा में जाने और मौत का खतरा बढ़ जाता है।

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