सूडान की तानाशाही को उखाड़ फेंकने में महिलाएं रहीं सबसे आगे
खार्तूम।सूडान में राष्ट्रपति ओमर अल बशीर को दशकों बाद सत्ता से उखाड़ फेंकने में यहां की महिलाओं का योगदान अहम रहा है। इसके बाद महिलाओं ने सैन्य शासन को भी नई सरकार बनाने के लिए बाध्य किया। सूडान में प्रदर्शनों का सिलसिला बीते साल दिसंबर में शुरू हुआ। राष्ट्रपति ओमर अल बशीर के खिलाफ लोग नारे लगा रहे थे। अप्रैल में उनके सत्ता से हटने के बाद अब सारा ध्यान सूडान में एक असैन्य सरकार के गठन पर है। इन प्रदर्शनकारियों में दो तिहाई महिलाएं थीं। सूडानी प्रोफेशनल एसोसिएशन की सारा अब्देलजलील के अनुसार महिलाओं की भागीदारी के बिना यह क्रांति संभव नहीं थी। इस दौरान कई महिलाओं को हिरासत में लिया गया, उन्होंने काफी पीड़ा भी झेली है।अब नई सरकार में उनके योगदान को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं।
रूसी विमान में अचानक लगी भीषण आग, हादसे में 41 यात्रियों की मौतप्रदर्शन को एक खास चरित्र दिया है पूर्वी अफ्रीका में कई प्रदर्शन हुए। इस नजर रखने वालीं सोमाली राजनेता फादुमो दायिब का कहना है कि महिलाओं ने प्रदर्शन को एक खास चरित्र दिया है। दायिब का कहना है कि उन्होंने इसे चिंगारी दी। महिलाएं इस प्रदर्शन को सड़कों तक पहुंचाया। सूडान में बीते 30 साल के दौरान सूडानी महिलाओं के अधिकारों को दबाया गया। इसकी बड़ी वजह रही इस्लाम की कट्टरपंथी व्याख्या। इस दौरान महिलाओं में राजनीति और शिक्षा के क्षेत्र में बराबरी का हक मांगने और कुरीतियों के खिलाफ उठ खड़े होने की इच्छा ने जन्म लिया। अब्देलजलील कहती हैं कि सूडान में महिला प्रदर्शनों की एक परंपरा रही है। 1964 और 1985 में हुए प्रदर्शनों में भी महिलाएं पहली कतार में थीं। उस समय भी सत्ता में बैठे तानाशाहों को अपनी गद्दियां गंवानी पड़ी थी।
श्रीलंका ने की बड़ी कार्रवाई, 200 मुस्लिम प्रचारकों समेत 600 से अधिक विदेशियों को देश से निकालाप्रतिरोध और एकता से सफलता पाई 2011 में अरब में कई क्रांतियां आईं और तानाशाह को सत्ता से बेदखल किया गया। सूडान में जो कुछ हुआ वह अन्य देशों के लिए मिसाल बन गया है। सूडानी प्रोफेशनल एसोसिएशन के अनुसार यह प्रदर्शन साबित करता है कि अन्याय को बाहर करने के लिए अगर पुरुषों के साथ महिलाएं भी सड़कों पर उतर आएं तो बड़ी क्रांति लाई जा सकती है। सूडान के बहुत से प्रदर्शनकारियों को मालूम है कि अरब दुनिया में क्रांति के बाद कई देशों में हालात खराब हुए। यह सूडान में भी हो सकता है। ऐसे में वह चाहते हैं कि यहां पर एक असैन्य सरकार बने। अकसर देखा गया है कि तानाशाहों को सत्ता से हटाने के बाद यहां पर आराजक तत्वों को बढ़ावा मिलता है। दमन,गृह युद्ध और जिहाद आज मध्य पूर्व में बहुत से देशों की हकीकत बन गए हैं।
अफगान सेना की बड़ी कार्रवाई, तालिबान के 52 आतंकियों को किया ढेरइस्लामिक स्टेट जैसे आतंकवादी गुट पैदा हुए गौरतलब है कि सीरिया, लीबिया, यमन और इराक में विपक्षी प्रदर्शनों और सरकारी दमन ने गृह युद्ध का रूप ले लिया और वहां तथाकथित इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकवादी गुट ने सत्ता को अपने हाथ में लेने की कोशिश की। ट्यूनीशिया में 2011 में अरब क्रांति शुरू हुई, वहां व्यवस्था में सुधार की शुरुआती उम्मीदों ने बाद में सारी उम्मीदें तोड़ दीं। सूडान में तीन दशक तक सत्ता में रहे ओमर अल बशीर के हटने के बाद प्रदर्शनकारी अपने देश में हो रहे घटनाक्रम को नजदीकी से देख रहे हैं। सेना ने राष्ट्रपति को पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया, लेकिन अब तक वहां कोई असैन्य सरकार नहीं बनी है। अब यह तय करना यहां की जनता के हाथ में वह किस चेहरे को सबसे अधिक पसंद करते हैं। महिलाएं प्रदर्शनकारी भी इसमें शामिल हैं। सरकार के गठन में इनका होना जरूरी है। सरकार में इनका साथ सूडान को नई पहचान दे सकता है।