एक दिन में लिया शादी का फैसला
ग्वालियर रियासत के महाराजा जीवाजीराव सिंधिया ने शादी जैसा महत्वपूर्ण निर्णय एक दिन में ही लिया था। मुंबई के ताज होटल की पहली मुलाकात में वह भावी महारानी को दिल दे चुके थे। विरोध के बावजूद वह शादी के फैसले पर अटल रहे।
ऐसी थी लव स्टोरी...
1. सागर के नेपाल हाउस में पली-बढ़ी राजपूत लड़की लेखा दिव्येश्वरी की महाराजा जीवाजी राव से मुलाकात मुंबई के होटल ताज में हुई।
2. महाराजा को लेखा पहली ही नजर में भा गईं थी। उन्होंने लेखा से राजकुमारी संबोधन के साथ बात की।
3. इस दौरान जीवाजी राव चुपचाप सब बातें सुनते रहे और लेखा की सुंदरता व बुद्धिमत्ता पर मुग्ध होते रहे।
4. उन्होंने अगले दिन लेखा को परिवार समेत मुंबई में सिंधिया परिवार के समुंदर महल में आमंत्रित किया।
5. समुंदर महल में लेखा को महारानी की तरह परंपरागत मुजरे के साथ सम्मानित किया गया, तो कुंजर मामा समझ गए कि उनकी लेखा 21 तोपों की सलामी के हकदार महाराजा जीवाजी राव सिंधिया की महारानी बनने वाली है।
6. कुछ दिनों बाद महाराजा ने अपनी पसंद व शादी का प्रस्ताव लेखा के मौसा चंदन सिंह के जरिए नेपाल हाउस भिजवा दिया।
7. बाद में उन्होंने शादी का एलान कर दिया। इस शादी का सिंधिया परिवार और मराठा सरदारों ने विरोध किया था।
8. शादी के बाद महाराजा जीवाजी राव जब अपनी महारानी को लेकर मौसा-मौसी सरदार आंग्रे से मिलवाने मुंबई ले गए, तो वहां भी विरोध झेलना पड़ा। हालांकि, बाद में विजया राजे ने अपने व्यवहार और समर्पण से सिंधिया परिवार व मराठा सरदारों का विश्वास व सम्मान जीत लिया था।
भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में से एक थीं विजयाराजे
विजयाराजे सिंधिया भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में से एक थीं। मप्र की राजनीति में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान है। 1967 में मप्र में सरकार गठन में उन्होंने बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। विजयाराजे सिंधिया का सार्वजनिक जीवन प्रभावशाली और आकर्षक था।
यह था राजमाता का असली नाम
राजमाता विजयाराजे सिंधिया का जन्म 12 अक्टूबर 1919 ई. सागर, मध्य प्रदेश के राणा परिवार में हुआ था। विजयाराजे सिंधिया के पिता महेन्द्रसिंह ठाकुर जालौन जिला के डिप्टी कलेक्टर थे, उनकी माता 'विंदेश्वरी देवी' थीं। विजयाराजे सिंधिया का विवाह के पूर्व का नाम 'लेखा दिव्येश्वरी' था।
21 फरवरी 1941में ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया से विवाह हुआ। पति की मृत्यु के बाद वह राजनीति में सक्रिय हुई और 1957 से 1991 तक आठ बार ग्वालियर और गुना संसदीय क्षेत्र से सांसद रहीं। से स्वास्थ्य खराब हो गया। 25 जनवरी 2001 में उनका निधन हो गया।
पति के नाम पर खुलवाया विश्व विद्यालय
पति जीवाजी राव सिंधिया के नाम पर विश्वविद्यालय खुलवाया। तत्कालीन प्रदेश सरकार से वित्तीय मदद दिलवाई। शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिए उन्होंने अपनी निजी संपत्ति जिसमें भवन शामिल हैं, उसमें सरस्वती शिशु मंदिर, गोरखी शिशु मंदिर, सिंधिया कन्या विद्यालय, एएमआई शिशु मंदिर और एमआईटीएस खुलवाए। आज भी ये स्कूल और इंजीनियरिंग कॉलेज संचालित हैं।
ऑल इंडिया अध्यापक कॉन्फ्रेंस या मेडिकल कॉन्फ्रेंस ग्वालियर में हुई, उसमें देश भर से आए शिक्षकों और डॉक्टरों को महल में भोज पर बुलाया गया। उनकी सादगी देखकर अध्यापक और डॉक्टर उनके प्रशसंक बन गए थे। ग्वालियर में पूर्व में मिलिट्री के कर्नल और जनरलों का आना-जाना लगा रहता था, वे उनको महल में बुलाकर खाना खिलाती थीं।
2001 में विजयाराजे सिंधिया का निधन हो गया था। विजयाराजे की वसीयत के हिसाब से उन्होंने अपनी बेटी को तमाम जेवरात और अन्य कीमती चीजें दी थीं। यहां तक कि अपने राजनीतिक सलाहकार और बेहद विश्वस्त संभाजीराव आंग्रे को विजयाराजे सिंधिया ट्रस्ट का अध्यक्ष बना दिया। विजयाराजे सिंधिया की दो वसीयतें सामने आई थीं। एक 1985 और दूसरी 1999 की। वसीयत विवाद को लेकर कोर्ट में चला गया था।