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ग्वालियर

कोर्ट ने याचिकाकर्ता से वसूला हर्जाना, बोला- वकील ने दी गलत सलाह तो करो शिकायत

अपने पक्ष में फैसला कराने के लिए गलत तथ्य प्रस्तुत कर न्यायालय के साथ धोखाधड़ी करने के आशय से प्रस्तुत याचिका को उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया। इसके साथ ही याचिकाकर्ता पर दो लाख का हर्जाना

ग्वालियरJan 20, 2019 / 12:51 am

रिज़वान खान

high court

कोर्ट ने याचिकाकर्ता से वसूला हर्जाना, बोला- वकील ने दी गलत सलाह तो करो शिकायत

ग्वालियर. अपने पक्ष में फैसला कराने के लिए गलत तथ्य प्रस्तुत कर न्यायालय के साथ धोखाधड़ी करने के आशय से प्रस्तुत याचिका को उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया। इसके साथ ही याचिकाकर्ता पर दो लाख का हर्जाना भी लगाया है।
न्यायालय ने याचिकाकर्ता से कहा है कि यदि उन्हें लगता है कि उनके अधिवक्ता द्वारा जानबूझकर गलत कानूनी सलाह दी गई है तो वे अपने कानूनी सलाहकार से हर्जाने की राशि वसूल करने की कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र हैं।
बार काउंसिल में रख सकते हैं
न्यायमूर्ति जीएस अहलुवालिया ने यह महत्वपूर्ण आदेश प्रताप सिंह गुर्जर की एडवोकेट यूके बोहरे के माध्यम से प्रस्तुत याचिका को खारिज करते हुए दिया है। न्यायालय ने अपने आदेश में याचिकाकर्ता को एक माह में हर्जाने की राशि रजिस्ट्री में जमा करने के आदेश दिए हैं। प्रिंसिपल रजिस्ट्रार को हर्जाने की वसूली के कानून के तहत कार्रवाई करने के भी निर्देश दिए गए हैं। याचिकाकर्ता मामले की शिकायत बार काउंसिल से भी कर सकता है।
यह था याचिका में
उच्च न्यायालय में यह याचिका यह कहते हुए प्रस्तुत की गई कि प्रतियाचिकाकर्तागण कलेक्टर शिवपुरी व तहसीलदार नरवर को आदेश दिया जाए कि वे ग्राम गड़ौल तहसील नरवर के सर्वे नंबर 37 रकबा 1.06 हैक्टेयरजमीन से बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाये बेदखल न किया जाए। इस जमीन पर याचिकाकर्ता 1984 से कृषि कार्य कर रहा है इसलिए इस जमीन का पट्टा याचिकाकर्ता के हित में किया जाए। उसे मुकदमें का हर्जा-खर्चा भी दिया जाए। इससे पहले 31 अक्टूबर 17 को उच्च न्यायालय ने एक आदेश जारी कर वादी को इस मामले में सिविल कोर्ट में दावा प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता दी थी। जबकि 15 जून 2015 को इस जमीन पर स्वामित्व के संबंध में प्रस्तुत वाद व्यवहार न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया गया था। इसके खिलाफ अपील की गई थी जिसे 17 दिसंबर 15 को अतिरिक्त जिला न्यायाधीश ने खारिज कर दिया था। जिसमें कहा गया था कि इस जमीन पर वादी अपना स्वामित्व व आधिपत्य प्रमाणित नहीं कर सकता है। इसलिए 23 जून 15 के व्यवहार न्यायालय के आदेश की पुष्टि की जाती है। इस प्रकार स्पष्ट तौर पर याचिकाकर्ता इस जमीन पर अपना स्वामित्व स्थापित नहीं कर सका था। याचिकाकर्ता की द्वितीय अपील भी खारिज हो गई थी। जबकि यह याचिका यह कहते हुए प्रस्तुत की गई कि इस जमीन पर याचिकाकर्ता का स्वामित्व एवं कब्जा है। याचिकाकर्ता द्वारा पूर्व में इस मामले में हुए आदेशों को प्रस्तुत नहीं किया गया। याचिकाकर्ता द्वारा इस मामले में तथ्यों को छुपाया गया।

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