आज वंशिका एक स्कूल की संस्थापिका हैं। उनके स्कूल में अच्छी संख्या में बच्चे पढ़ने आते हैं। इसके साथ ही वे एक सोशल वर्कर भी हैं। वे मानती हैं कि ग्रामीण परिवेश में रह रहे लोगों की मानसिकता बदलने की जरूरत हैं। उन्हें समझाना है कि जिंदगी में कोई मुकाम हासिल करने के लिए परिवेश से ज्यादा जज्बा जरूरी है।
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कई कि.मी टूर पढ़ने जाती थीं वंशिका
वंशिका ने बताया कि, मेरे पापा इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में थे। उनकी ड्यूटी हमेशा ग्रामीण इलाके में रही। इससे हमारा पूरा परिवार ही उसी माहौल में ढल चुका था। मुझमें और मेरी बहन में महज एक साल का अंतर था। भाई हमसे छोटा था। मेरी प्री प्राइमरी मालवा रीजन कुकसी धार में हुई और प्राइमरी मंडलेश्वर में। उस समय वहां स्कूल नहीं था। मैं कई किमी दूर स्कूल पढ़ने जाती थी। क्लास 12वीं बड़वा रीजन से की। पढ़ाई के लिए हमें काफी संघर्ष करना पड़ा। वहीं, ग्रामीण परिवेश में रहने के लिए कारण लोगों की ओछी मानसिकता का भी सामना करना पड़ा।
मां को समझाया और ग्वालियर आकर पढ़ाई की
जीवन में सब कुछ खत्म होने जैसा तब हुआ, जब 2004 में पापा नहीं रहे। मां हाउसवाइफ थीं। उन्हें समझ नहीं आ रहा था क्या करें? तब हम दोनों बहनों ने उन्हें समझाया और ग्वालियर आए। यहां मैंने बीसीए किया। इसके बाद एयर हॉस्टेस का डिप्लोमा किया। पैसे कमाने के लिए पार्ट टाइम जॉब भी की। तीन साल पहले मैंने स्कूल खोला। आज वह अच्छा चल कर रहा है। इसी दौरान मेरी शादी भी हो गई। आज दोनों परिवारों के सपोर्ट से मैं अपना काम कर पा रही हूं।
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