सरकार से मिली जमीन पर था दूसरों का कब्जा
रामबेटी ने बताया कि पति के शहीद होने के बाद ससुरालजन ने साथ नहीं दिया, तब मैं अपने पिता के यहां मुरार स्थित लाल टिपारा आ गई। यहां पिता के काम में हाथ बटाया करती थी। यहीं दोनों बेटों नारायण (6 साल) और रघुनाथ (3 साल) का स्कूल में दाखिला कराया। सरकार से मिलने वाली मदद की मुझे जानकारी नहीं थी और न ही मैंने प्रयास किए। डेढ़ साल बाद सरकारी अफसर आए और 20 बीघा जमीन दे गए, जो कि बंजर थी और उसके काफी बड़े भाग पर दूसरों का कब्जा था। काफी मशक्कत के बाद जमीन मिली।
12 साल बाद बंजर भूमि में उगा पाए अनाज
कुछ समय बीता तो मैंने बंजर जमीन पर खेती करने की सोची। अपने दोनों बेटों के साथ वहां जाती और जंगली पेड़ काटती। उसे पूरी तरह साफ करने में 12 साल लगे, तब तक बच्चे भी बड़े हो गए। हम सभी ने मिलकर खेती शुरू की। खुद बीज डालते, जुताई करते और अनाज होने पर बेचने जाते।
13 साल की उम्र में खत्म हो गया बेटा
जीवन में दूसरी बार दुख का पहाड़ तब टूटा, जब बेटे रघुनाथ को सांप ने काट लिया। इलाज के बाद उसकी मौत हो गई। समय बीता बेटी बड़ी हुई और उसकी शादी कर दी। अब मेरा बड़ा बेटा नारायण सिंह और एक नाती है।