सबको कर रहे ढेर
ठेठ गांव की टीम व सीमित साधन-सुविधा के बावजूद कड़ी मेहनत व प्रशिक्षण से साधन सम्पन्न सरकारी एकेडमी की टीम तक को गांव के होनहार खिलाडिय़ों से सजी टीम पूर्व में धूल चटा चुकी है। स्थिति यह है कि गांव की छोरियों से सजी टीम के आगे ना कोई खेल एकेडमी टिकी और ना टीम इंडिया के प्लेयर से सजी कोई टीम टिक सकी है। राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर कई बार बड़े खिलाडिय़ों से लैस बड़ी टीमों को ढेर किया है। गांव सिलवाला खुर्द की लड़कियां और लडक़े वॉलीबाल में कामयाबी के निरंतर झंडे फहरा रहे हैं।
हर जगह लगातार जीत
पिछले कई साल से वॉलीबाल का ओपन एवं विद्यालयी टूर्नामेंट सिलवाला खुर्द की टीम जीत रही है। गत साल तो विद्यालयी वॉलीबाल प्रतियोगिता में 14, 17 एवं 19 वर्ष तीनों ही श्रेणी में सिलवाला खुर्द की टीम राज्य स्तर पर विजेता रही थी। वहीं पहली बार खेले गए ग्रामीण ओलिम्पिक में भी सबको धूल चटाकर राज्य स्तर पर सिलवाला की लड़कियां चैम्पियन बनी थी। एसकेडी विश्वविद्यालय की तरफ से खेलते हुए सिलवाला की लड़कियां स्पोट्र्स यूनिवर्सिटी की टीम को हराकर धूम मचा चुकी है। वॉलीबाल खेल अकादमी की टीम को भी हरा चुकी है।
बदलाव की दलील
गांव सिलवाला खुर्द की लड़कियों की वॉलीबाल में बढ़ती बादशाहत इस बात की दलील है कि देश व राज्य के खेल सिस्टम में बदलाव की जरूरत है। जब सरकार से विभिन्न तरह की सुविधाएं एवं धन लेने वाले खेल संस्थान ठेठ गांव की लड़कियों की टीम से हार रहे हैं तो मंथन की आवश्यकता है। क्योंकि एकेडमी आदि में साधन-सुविधाओं की कोई कमी नहीं होती। जबकि गांव में खिलाड़ी सीमित साधनों के साथ अपना हुनर मांजते हैं। जरूरी है कि बसंतसिंह मान जैसे जुनून की हद तक प्रशिक्षण देने वाले प्रशिक्षक तलाशे जाए। क्योंकि जिनमें खेल को लेकर जुनून हो, वही कोच ही खिलाडिय़ों में जीत की भूख पैदा कर उनको कड़ी मेहनत करने को प्रेरित कर सकता है।