पुलिस का यह बयान सिर्फ इस आधार पर है कि पीड़िता के शरीर और कपड़ों पर स्पर्म नहीं मिले लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या कपड़ों और शरीर से स्पर्म नहीं मिलना इस बात काे साबित कर देता है है कि रेप या गैंगरेप नहीं हुआ ? अब इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए हमने थाेड़ा सा कानून की किताबों काे पलटना हाेगा। अगर हम भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के पिछले संस्करण काे देखें ताे उसमें साफ कहा गया है कि, बलात्कार के अपराध के साबित करने के लिए युवती के शरीर में स्पर्म की उपस्थिति साबित करना अनिवार्य नहीं है।
कानून की यह धारा पुलिस के इस दावे काे खाेखला साबित कर रही है और इस बात की भी वकालत कर रही है पुलिस का यह दावा पूरी तरह से साबित नहीं हाेता कि रेप नहीं हुआ। उदाहरण के ताैर पर हम सुप्रीम काेर्ट के एक फैसले को भी ले सकते हैं। वर्ष 2014 में सुप्रीम काेर्ट ने परमिंद्र उर्फ लडका पाेला बनाम दिल्ली राज्य एमसीसी 592 में हाईकाेर्ट के एक फैसले की पुष्टि की थी जिसमें साफ कहा गया था कि बलात्कार काे साबित करने के लिए स्पर्म की उपस्थिति आवश्यक नहीं है। ऐसे में पुलस का दावा कानूनी रूप से कितना प्रबल है इसका सहज अंदाजा आप खुद ही लगा सकते हैं।