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भारत में दुर्लभ बीमारियों से लड़ने में जागरूकता और निदान की कमी बाधा : रिपोर्ट

भारत में दुर्लभ बीमारियों से लड़ने में सबसे बड़ी रुकावट जागरूकता की कमी और गलत डायग्नोसिस है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में दुर्लभ बीमारियों के खिलाफ लड़ाई में बड़ी बाधा जागरूकता की कमी और गलत डायग्नोसिस है।

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Lack of awareness diagnosis hinders India fight against rare diseases

भारत में दुर्लभ बीमारियों से लड़ने में सबसे बड़ी रुकावट जागरूकता की कमी और गलत डायग्नोसिस है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में दुर्लभ बीमारियों के खिलाफ लड़ाई में बड़ी बाधा जागरूकता की कमी और गलत डायग्नोसिस है।

हाल ही में सरकार ने दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए 4 दवाईयों को मंजूरी दी है। यह मंजूरी भारत में दुर्लभ बीमारियों के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण कदम है। ये स्वदेशी दवाइयां मरीजों के लिए इलाज को आसान बनाएंगी।

लेकिन जागरूकता और डायग्नोसिस की कमी अभी भी बड़ी समस्या है। ग्लोबलडेटा की रिपोर्ट में बताया गया है कि लोगों को इन बीमारियों के बारे में जानकारी नहीं होती है और डॉक्टर भी सही से इसका पता नहीं लगा पाते हैं।

सरकार ने 2021 में दुर्लभ बीमारियों के लिए राष्ट्रीय नीति (NPRD-2021) बनाई थी। इसके तहत दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए आठ केंद्र बनाए गए हैं। इसके अलावा टेस्टिंग सेंटर और मरीजों के लिए आर्थिक मदद भी दी जा रही है।

लेकिन इसके बावजूद दुर्लभ बीमारियां भारत में एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बनी हुई हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में विल्सन की बीमारी के मरीजों की संख्या 2023 में 53,988 थी और 2030 तक 55,150 तक पहुंचने की उम्मीद है।

दुर्लभ बीमारियों के बारे में जानकारी कम होना, रिसर्च कम होना और डॉक्टरों और लोगों में जागरूकता कम होना, ये सब बड़ी चुनौतियां हैं। सरकार को लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने और डॉक्टरों को इन बीमारियों के लक्षणों, डायग्नोसिस और इलाज के बारे में शिक्षित करने की जरूरत है।

इसके लिए सरकार सोशल मीडिया और डिजिटल कैम्पेन चला सकती है। कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग आदि के खिलाफ चलाए गए जागरूकता अभियानों से सीख ली जा सकती है।

दुर्लभ बीमारियों के खिलाफ लड़ाई में सरकार, डॉक्टर, मरीजों के संगठन और मीडिया सब का साथ होना जरूरी है। रिसर्च संस्थानों, दवा कंपनियों और विदेशी दुर्लभ बीमारी नेटवर्क के साथ सहयोग करना भी जरूरी है।