इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के मुताबिक हाइपरएक्टिविटी की समस्या ज्यादातर प्री-स्कूल या केजी कक्षाओं के बच्चों में होती है। कुछ बच्चों में, किशोरावस्था की शुरुआत में स्थिति खराब हो सकती है। आईएमए के अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल के अनुसार- ‘एडीएचडी वाले बच्चे बेहद सक्रिय और कुछ अन्य व्यवहारगत समस्याएं प्रदर्शित कर सकते हैं। उनकी देखभाल करना और उन्हें कुछ सिखाना मुश्किल हो जाता है। वे स्कूल में भी जल्दी फिट नहीं हो पाते हैं और कोई न कोई शरारत करते रहते हैं। यदि इस कंडीशन को शुरू में ही काबू न किया जाए तो यह जीवन में बाद में समस्याएं पैदा कर सकती हैं।
एडीएचडी अर्थात अटेंशन डिफिसिट हाइपरएक्टिव डिसऑर्डर, दिमाग से संबंधित विकार है जो बच्चों और बड़ों दोनों को होता है। लेकिन बच्चों में इस रोग के होने की ज्यादा संभावना होती है। इस बीमारी के होने पर आदमी का व्यवहार बदल जाता है और याद्दाश्त भी कमजोर हो जाती है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अटेंशन डेफिसिट हायपरएक्टिविटी यानी एडीएचडी का मतलब है, किसी चीज़ पर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता का सही इस्तेमाल नहीं कर पाना। माना जाता है कि कुछ रसायनों के इस्तेमाल से दिमाग की कमज़ोरी की वजह से ये कमी होती है।
तीन तरह के लक्षण इस डिसऑर्डर के लक्षणों को तीन श्रेणियों में बांटा जाता है : ध्यान न देना, जरूरत से अधिक सक्रियता और असंतोष। चीनी, टीवी देखने, गरीबी या फूड एलर्जी से एडीएचडी नहीं होता।
क्या है हल शिक्षा व रचनात्मकता से इस स्थिति पर काबू पा सकते है। एडीएचडी वाले बच्चों के साथ ठीक से रहना चुनौती है, लेकिन हर चीज टाइम टेबल से करने पर मदद मिल सकती है।
ये करें
रूटीन सेट करें स्पष्ट सीमाएं निर्धारित करें, ताकि हर कोई जान ले कि किस तरह का व्यवहार अपेक्षित है।
संकेतों पर ध्यान दें यदि लगे कि बच्चा आपा खो रहा है, तो उस पर ध्यान दें और उसे किसी अन्य गतिविधि में व्यस्त कर दें।