पोस्ट-कोविड सिंड्रोम से है थकान और मूड डिसऑर्डर का संबंधः स्टडी
भले ही दुनिया में कोरोना वायरस से ठीक होने में ज्यादातर लोगों को बहुत परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा हो, लेकिन हकीकत यह है कि इससे उबरने के बाद लोगों को थकान-मूड डिसऑर्डर समेत कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
Post-Coronavirus Syndrome includes Fatigue, Mood Disorders: Study
वाशिंगटन। जैसे-जैसे कोरोना वायरस संक्रमितों में नजर आने वाले लक्षण बदल रहे हैं, उसी तरह संक्रमण से उबरने के बाद नजर आने वाली परेशानियां भी बदल रही हैं। पोस्ट-कोरोना सिंड्रोम या पीसीएस या कोविड-19 लॉन्ग-हॉल सिंड्रोम और पोस्ट-एक्यूट सीक्वील ऑफ सार्स कोव-2 से पीड़ित मरीजों में मूड डिसऑर्डर, थकान और अन्य कई दिक्कतें देखने को मिली हैं, जो उनके दैनिक गतिविधियों या कामकाज करने में नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं। इस संबंध में किए गए अध्ययन के निष्कर्ष मायो क्लीनिक प्रोसीडिंग्स पत्रिका में प्रकाशित किए गए हैं।
Patrika Positive News: केंद्र सरकार की बड़ी योजना, इस साल के अंत तक सभी को लगेगी कोरोना वैक्सीन यह निष्कर्ष मायो क्लीनिक के COVID-19 गतिविधि पुनर्वास कार्यक्रम (एक्टिविटी रैहिबिलिटेशन प्रोग्राम) में भाग लेने वाले पहले 100 मरीजों पर किए गए अध्ययन पर आधारित है। यह COVID-19 सिंड्रोम वाले मरीजों के मूल्यांकन और इलाज के लिए स्थापित पहले बहु-विषयक कार्यक्रमों में से एक है।
इसमें मरीजों का मूल्यांकन और इलाज 1 जून से 31 दिसंबर, 2020 के बीच किया गया था। इनकी औसत उम्र 45 वर्ष थी और इसमें 68 प्रतिशत महिलाएं थीं। संक्रमण के औसत 93 दिनों के बाद उनका मूल्यांकन किया गया। COVID-19 सिंड्रोम के लिए मूल्यांकन चाहने वाले मरीजों का सबसे आम लक्षण थकान था।
अध्ययन में शामिल 80 प्रतिशत मरीजों ने असामान्य थकान की शिकायत की, जबकि 59 प्रतिशत ने श्वसन संबंधी शिकायत की और इतने ही प्रतिशत ने न्यूरोलॉजिक शिकायतें कीं। एक तिहाई से अधिक मरीजों ने रोजमर्रा के आसान से काम को करने में कठिनाई पेश आने की शिकायत की और 3 में से केवल 1 मरीज ही अपने कामकाज में बिना किसी दिक्कत के वापस पहुंचा।
Must Read: कब तक खुद को कोरोना वायरस से बचाने की पड़ेगी जरूरत? मिल गया सबसे बड़े सवाल का जवाब मायो क्लीनिक के कोविड-19 एक्टिविटी रिहैबिलिटिशेन प्रोग्राम के चिकित्सा निदेशक और एमडी ग्रेग वेनिचाकॉर्न ने कहा, “अध्ययन के शामिल अधिकांश मरीजों में कोविड-19 संक्रमण से पहले कोई बीमारी नहीं थी और कई को कोरोना से संबंधित ऐसे लक्षणों का अनुभव नहीं हुआ, जो अस्पताल में भर्ती होने के लिए पर्याप्त गंभीर थे।”
इस अध्ययन के पहले लेखक डॉ. वेनिचाकॉर्न ने कहा, “हल्के लक्षणों के होने के बावजूद अधिकांश मरीजों की प्रयोगशाला रिपोर्ट सामान्य थीं। यह समय पर पीसीएस को पहचानने और फिर प्रभावी ढंग से इसे दूर करने की चुनौतियों में से है।”
फिर भी, लक्षणों ने अक्सर महत्वपूर्ण नकारात्मक प्रभाव डाला क्योंकि मरीजों ने रोजमर्रा के कामकाज पर लौटने की कोशिश की, जिसमें दफ्तर का काम भी शामिल है। डॉ. वेनिचाकॉर्न ने कहा, “अधिकांश मरीजों में हमे कथित संज्ञानात्मक हानि को ठीक करने के लिए फिजिकल थेरेपी, ऑक्यूपेशनल थेरेपी या मस्तिष्क पुनर्वास की जरूरत पड़ी।”
उन्होंने आगे बताया, “जबकि कई रोगियों में थकान थी, आधे से अधिक ने सोचने में परेशानी की सूचना दी, जिसे आमतौर पर ‘ब्रेन फॉग’ के रूप में जाना जाता है। और एक तिहाई से अधिक मरीजों को जिंदगी की बुनियादी गतिविधियां करने में परेशानी थी। कई मरीज तो ऐसे थे जो कम से कम कई महीनों के लिए अपने आम दफ्तरी या व्यावसायिक काम को फिर से शुरू नहीं कर सके।”
Must Read : भारत में कोरोना के तांडव के बीच अच्छी खबर, टॉप डॉक्टर ने बताया कैसे रहें सुरक्षित उन्होंने आगे कहा, “जैसे कि महामारी अभी जारी है और हम संक्रमण के बाद ऐसे लक्षणों का अनुभव करने वाले अधिक मरीजों की उम्मीद करते हैं, और हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स को इसके लिए तैयार रहने की जरूरत है। उन्हें यह पता होना चाहिए कि क्या देखना है और मरीजों की जरूरतों के हिसाब से सबसे अच्छा इलाज कैसे दें।”
उन्होंने कहा कि संक्रमण से उबरने वाले मरीजों को लंबे समय तक लक्षणों का सामना नहीं करना चाहिए और जांच करानी चाहिए, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स से ऐसे मरीजों के लिए बेवजह महंगे टेस्ट ना लिखने के लिए कहा।
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