टापू पर सप्तऋषि की प्रतिमा स्थापना का यह है उद्देश्य
ऐसा माना जाता है पृथ्वी पर मां ताप्ती के अवतरण के समय से ही ताप्ती नदी के तट पर ऋषि मुनि तपस्या करते आ रहे हैं। सरोवर के मध्य स्थित टापू को ऋषियों की तपस्थली माना जाता है। जहां ऋषियों ने हजारों साल तक तप किया। टापू को सप्तऋषि के नाम से भी जाना जाता है। इस वजह से सरोवर के मध्य टापू पर सप्त ऋषियों की प्रतिमा स्थापित की जा रही है।
यह है सप्त ऋषियों की विशेषता
ऋषि वशिष्ठ – वैदिक काल के विख्यात ऋषि थे। ऋषि वशिष्ठ राजा दशरथ के राजकुल होने के साथ भगवान राम के गुरु थे। वशिष्ठ जी प्राचीन वैदिक काल के पूर्णज्ञानी, महान तेजस्वती, त्रिकालदर्शी तथा मंत्र यज्ञ विद्या के ज्ञानी थे।
ऋषि जमदग्नि- जमदग्नि ऋषि का जन्म भृगुवंशी ऋचीका के पुत्र के रूप में हुआ था। जमदग्नि ने तप और साधना से उच्च स्थान प्राप्त किया था। पुराणों के अनुसार इनकी प7ी रेणुका थी। वैशाख शुक्ल तृतीया इनके पांचवे प्रसिद्ध पुत्र प्रदोषकाल में जन्मे थे।
ऋषि विश्वामित्र- विश्वमित्र बड़े ही प्रतापी और तेजस्वी थे। ऋषि धर्म ग्रहण करने के पूर्व वे पराक्रमी और प्रजावत्सल थे। तप और ज्ञान के कारण महर्षि की उपाधि मिली। इन्हें चारों वेदों का ज्ञान और ओम् कार का ज्ञान प्राप्त हुआ।
ऋषि ब्रह्मतेज याज्ञवल्क्य- याज्ञवल्क्य दार्शनिक थे। वैदिक साहित्य में शुक्ल यजुर्वेद की वाजसनेयी शाखा के द्रष्टा हैं। इनकों अपने काल का सर्वोपरि वैदिक ज्ञाता माना जाता है। इन्होंने शतपथ ब्राह्मण की रचना की है।
ऋषि व्यास- वेदव्यास महाभारत ग्रंथ के रचयिता थे। महाभारत ग्रंथ का लेखन भगवान गणेश ने महर्षि वेदव्यास से सुनकर किया था। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार महर्षि व्यास त्रिकालज्ञ थे। गुरुपूर्णिमा पर्व व्यास जी की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
ऋषि कणाद- हजारों साल पहले महर्षि कणाद ने यह रहस्य उजागर किया था द्रव्य के परमाणु होते हैं। ऋषि कणाद को परमाणु सिद्धांत का जनक भी माना जाता है। वैशेषिक एक दर्शन है जिसके प्रवर्तक ऋषि कणाद है।
ऋषि चरक- चरक एक महर्षि एवं आयुर्वेद विशारद के रूप में विख्यात है। वे कुषाण राज्य के राजवैद्य थे। इनके द्वारा रचित चरक संहिता एक प्रसिद्ध आयुर्वेद ग्रंथ है। इसमें रोगनाशक और रोग निरोधक दवाओं का उल्लेख है।