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होशंगाबाद

ये कौन हैं पूनमचंद जो अतृप्त- भटकती आत्माओं को दिलाते हैं मोक्ष

20 साल से श्राद्धपक्ष में कर रहे अतृप्त अनाम और बेसहारा मृत आत्माओं का तर्पण, अब तक 700 लोगों को दे चुके है मोक्ष

होशंगाबादSep 05, 2017 / 11:32 am

harinath dwivedi

pitra paksha 2017

pitra paksha 2017

राजेश मेहता. खिरकिया। आपने जीवत रहने पर लोगों को गरीबों की मदद करते हुए जरूर देखा सुना होगा लेकिन खिरकिया के पूनमचंद गुप्ता दुनिया के इकलौते व्यक्ति हैं, जो अतृप्त, अनाम और बेसहारा मृत आत्माओं का उद्धार करते हैं। पूनम ये काम आज से नहीं बल्कि २० वर्ष से कर रहे हैं और अब तक करीब 700 मृत आत्माओं को उद्धार कर चुके हैं। श्राद्धपक्ष आते हैं ये आसपास के शहरों से ऐसे बेसहारा और अनाम शवों के अवशेष इकट्ठा करते हैं और फिर विधिविधान से इलाहाबाद त्रिवेणी में उसे विसर्जित कर उनका उद्धार करते हैं।
कई लोग ऐसे भी होते हैं जिनकी अस्थियां भी गंगा नदी तक नहीं पहुंच पाती तो तर्पण होना तो दूर की बात है। जिस कारण कई अनाम और बेसहारा मृत आत्माओं को मोक्ष नसीब हो पाता है। उनकी आत्मा भटकती रहती है। पिछले २० साल से ऐसी ही अनाम लोगों की अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करने का बीड़ा उठाया है हरदा जिले के खिरकिया नगर के समाजसेवी एवं पूर्व नपं अध्यक्ष पूनमचंद गुप्ता ने। पूनमचंद अनाम मृतकों को मोक्ष दिलाने के लिए काम करते हैं। अब तक वह करीब ७०० से अधिक अनाम लोगों की अस्थियां विसर्जित कर चुके हैं। साथ ही उनका तर्पण भी करते हैं।
कई श्मशानों से जुटाते हैं अस्थियां
गुप्ता द्वारा प्रतिवर्ष श्राद्ध पक्ष में नगर सहित आसपास के श्मशान घाटों से प्राप्त अनाम अस्थ्यिां व बेसहारा, निर्धन परिवारों की अस्थियों को लेकर इलाहाबाद में त्रिवेणी संगम ले जाकर विसर्जित करते हैं। वे न केवल अस्थियां विसर्जित करते हैं, बल्कि उनकी मोक्ष प्राप्ति के लिए धार्मिक अनुष्ठान तर्पण आदि कार्य विधि पूर्ण करते हैं। इस वर्ष भी वे इलाहाबाद के लिए रवाना होंगे।
बढ़ गया कारवां
1997 से पूनमचंद गुप्ता ने यह कार्य प्रारंभ किया था, इसके बाद लगाातर इस काम से जुड़े हैं। उनके प्रेरणा स्त्रोत पूर्व विधायक बद्रीनारायण अग्रवाल, एवं स्व. ब्रजमोहनदास सोडानी हैं। पूर्व में इस पुनीत कार्य में 3 से 4 लोग ही अस्थियों का विसर्जन करने जाते थे, लेकिन अब उनके साथ 12 से अधिक लोग हैं। जब इन अस्थियों का विसर्जन के लिए ले जाया जाता है तब मुक्तिधाम से रेलवे स्टेशन तक शोभायात्रा निकाली जाति है। जिसमें समूचा शहर सहभागी होता है। गुप्ता कहते हैं कि हिन्दू संस्कृति की मान्यता के अनुसार गंगा में अस्थियां प्रवाहित करने पर मृत आत्माओं को मोक्ष प्राप्त होता है, लेकिन इस कार्य के चलते उन्हे आत्मीय शांति मिलती है।
यूं मिली प्रेरणा
वर्षों पूर्व शव दाह के लिए पूर्व का शेड अनुपयोगी होने लगा तब नगर पंचायत अध्यक्ष रहते नया शव दाह केंद्र बनाने गड्ढे खोदे जा रहे थे, तभी मजदूरों ने बताया कि गड्ढे खोदने में शवों की हड्डियां निकल रहीं हैं। ये सुनकर उनको बड़ी वेदना हुई की लोगों द्वारा उनके अपने परिजनों की हड्डियां जलप्रवाह में बहाने की बजाय आर्थिक असमर्थता के चलते उन्हें जमीन में दबा दिया जाता है। उन्होंने यह बात पूर्व विधायक बद्रीनारायण अग्रवाल एवं ब्रजमोहनदास सोडानी को बताई और विचार करने लगे की क्यों न इनको नर्मदा में प्रवाहित किया जाए। तब तय किया कि प्रत्येक वर्ष पितृ मोक्ष माह में उन अस्थियों को विसर्जित कर उनकी आत्मा को तृप्त करेंगे।

श्राद्ध का महत्व
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, हमारी तीन पूर्ववर्ती पीढिय़ां पितृ लोक में रहती हैं, जिसे स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का एक क्षेत्र माना जाता है। जिस पर मृत्यु के देवता यम का अधिकार होता है। ऐसा माना जाता है कि अगली पीढ़ी में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो पहली पीढ़ी उनका श्राद्ध करके उन्हें भगवान के करीब ले जाती है. सिर्फ आखिरी तीन पीढिय़ों को ही श्राद्ध करने का अधिकार होता है।

१५ दिन रहेगी अवधि
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार इस बार पितृ पक्ष की अवधि 15 दिनों रहेगी, इस दौरान ज्यादातर हिन्दू अपने पितरों को श्रद्धाजंलि देने का काम करते हैं। जिसमें मुख्य रूप से अपने पितरों को याद करते हुए खाना अर्पित किया जाता है। पितृ पक्ष को श्राद्ध, कनागत भी कहा जाता है। जो अक्सर भद्रापद महीने में अनंत चतुर्दशी के बाद आते हैं। इस साल यह 5 सितंबर से शुरू होकर 19 सितंबर तक चलेंगे।

ऐसे करें पितृों का तर्पण
बड़े पुत्र या परिवार के बड़े पुरूष द्वारा ही श्राद्ध किया जाता है। इस दौरान तीन चीजों का ध्यान रखें- जिसमें धार्मिकता, चिड़चिड़ापन और गुस्सा शामिल हैं। पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए की जा रही प्रार्थना के बीच कुछ भी अशुभ नहीं होना चाहिए। दो ब्राह्मणों को भोजन, नए कपड़े, फल, मिठाई सहित दक्षिणा देनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि उन्हें जो कुछ दिया गया वो हमारे पूर्वजों तक पहुंचता है। ब्राह्मणों को दान देने के बाद गरीबों को खाना खिलाना जरूरी है ऐसा कहा जाता है जितना दान दोंगे वह उतना आपके पूर्वजों तक पहुंचता है। इसके अलावा श्राद्ध करना इसलिए भी महत्वपूर्ण है इससे आपको अपने पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है जिससे आपके घर में खुशहाली रहती है।
ये है महत्व, यहां करें तर्पण
सनातन धर्म में मानव समाज का पितृ पूजन सबसे बड़ा पर्व है। इसमें वस्त्र, आभूषण, भोजन का दान ब्राह्मणों, साधु-संत एवं गरीबों को दान करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। शहर में सेठानीघाट सहित अन्य घाटों पर पितृ पूजन-तर्पण किए जाएंगे। पितृ तर्पण के सात मुख्य स्थान पं. धर्म शास्त्री के मुताबिक पितृ तर्पण के सात मुख्य धार्मिक स्थल हैं। जिसमें अमर कंटक से सागर तक का नर्मदा तट सहित बद्रीनाथ में ब्रह्म कपाल मंदिर, उज्जैन में अक्षय भट्ट, नासिक में त्रयम्बकेश्वर गोदावरी, राजस्थान में पुष्कर राज ब्रह्मा मंदिर, यूपी में इलाहाबाद त्रिवेणी संगम, गुजराज में सोमनाथ के पास मातृ गया, मथुरा हाथरस के पास सौरभ कुंड शामिल है। इन पवित्र स्थानों पर पितृ तर्पण, पितृ कर्म, धार्मिक अनुष्ठान करने पितृरों की मुक्ति मिलती है और पितृ दोष का निवारण होता है।
क्या है पितृ तर्पण और पूजन
पितृपक्ष पूर्णिमा से प्रारंभ होकर 16 दिनों तक चलते हैं। नर्मदा तट सहित अन्य तीर्थ स्थलों पर पर कुशा से पितृ पूजन-तर्पण होता है। कुशा की उत्पत्ति अमृत से है। कुशा व्दारा तर्पण करने से पितृगण प्रसन्न होते हैं। देवता, ऋषि-मुनी सभी को कुशा से जल तर्पण होता है। बिहार के गया का विशेष महत्व है। यहां देश भर से लोग पहुंचते हैं। गया में ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों देवता विराजमान रहते हैं। विष्णु का एक चरण वहां स्थापित है। मंदिर विष्णु चरण से विख्यात है। अक्षय भट्ट की धर्मशिला में अधोगति प्राप्त पितरों का विशेष पूजन होता है। क्या है पिंडदान का महत्व मानव शरीर को पिंड उत्पत्ति बताई गई है, इसलिए सप्त धान्य, मावा, सफेद तिल, स्वर्ण-चांदी की भस्म, चावल, सुंगधित दृव्य, दूध-घी इनसे पिंड बनाकर मंत्रों से पितरों का आव्हान कर जागृत मानकर पूजन किया जाता है। पिंड साक्षात देवताओं एवं पितृ का स्वरूप होता है। पिंड के पूजन से मानव अपने वंश का उद्धार करता है। चाहे वह किसी भी योनी में हो, तर्पण से मुक्ति मिलती है।

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