आयुर्वेदिक ग्रंथों में इस रोग को अर्धावभेदक नाम दिया गया है। ओस, ठंडी हवाएं, अधिक भोजन करना, समय पर भोजन न करना, ठंडे पेय पदार्थों का प्रयोग, पहला भोजन पचा न होने पर फिर से खाना, बासी भोजन करना, मल-मूत्र रोकना, अधिक व्यायाम करना, हार्मोंस में परिवर्तन, नींद न पूरी होना और थकान आदि कारणों से माइग्रेन हो सकता है।
यूं तो यह रोग किसी भी उम्र में हो सकता है लेकिन 35 से 45 वर्ष के लोगों में यह अधिक देखने को मिलता है। बच्चे भी इस रोग के शिकार होते हैं लेकिन किशोरावस्था में इसके रोगियों की संख्या बढ़ जाती है। ज्यादा पढऩे और लिखने वाले, अधिक मानसिक काम करने वाले या तनाव में रहने वाले लोग इसकी गिरफ्त में जल्दी आते हैं। आयुर्वेद के अनुसार वायु जब कफ के साथ शरीर के आधे भाग को जकड़ लेती है तो शंख प्रदेश यानी कान, आंख व सिर में दर्द होता है। यह रोग जब अधिक देर तक बना रहता है तो सुनने व देखने की क्षमता प्रभावित होने लगती है।
इसके रोगी को कब्ज की शिकायत नहीं रहनी चाहिए। कब्ज के लिए त्रिफला चूर्ण का प्रयोग गुनगुने पानी के साथ करें। पेट साफ रखने वाली दवाएं ठंडे पानी से न लें। जिस दिन पेट साफ करने वाली दवा लें, उस दिन मूंग की दाल की खिचड़ी घी के साथ खाएं। सुबह दूध के साथ जलेबी लेने से भी सिरदर्द में आराम मिलता है। इसके रोगी को ज्यादा देर खाली पेट नहीं रहना चाहिए। दूध, मलाई, खोया, रबड़ी, मालपुआ, फेणी, घेवर, हलवा आदि खाने से रोगी को आराम मिलता है। इसके अलावा सुबह दूध में घी डालकर और भोजन के बाद घी पीने से इस रोग में लाभ होता है। गाय का दूध या घी नाक में दो-दो बूंद डालने से फायदा होता है। नौसादर और चूने का मिश्रण सूंघने से भी आराम मिलता है।