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1600 कोने और 84 खंभे
बूंदी में बनी विश्व प्रसिद्ध 84 खम्भों की छतरी की वास्तुकला अपने आप में अनूठी है। इतिहासकारों के अनुसार इसका निर्माण सन् 1684 में तत्कालीन शासक राव राजा अनिरुद्ध सिंह ने अपनी धाय मां के पुत्र यानी धाभाई देवा की स्मृति में करवाया था। उस वक्त उनके दिमाग में एक अनूठी बात सूझी और उन्होंने समय से इस छतरी को जोड़ दिया। इस छतरी में कुल 1600 कोने बनवाए और 84 खंभे स्थापित कराए। इस तरह 1600 कोने और 84 खंभों को मिलाएं तो 1684 होता है जो छतरी को बनाने का साल है। देवा राव राजा अनिरुद्ध सिंह की धाय मां का पुत्र होने के कारण वह उन्हें बेहद प्रिय था। देवा का अल्प आयु में निधन हो जाने से अत्यंत दुखी हुये राव राजा अनिरुद्ध सिंह ने उसकी याद को चिरस्थाई बनााने रखने के लिए 84 खम्भों की छतरी का निर्माण करवा कर उन्हें समर्पित किया था।
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नजरें हटाने को नहीं करता मन
वहीं छतरी के अंदर की छत पर अप्सराओं व संगीतज्ञ तथा उसके साथ साथ चारों ओर हाथियों की लड़ाई, बांसुरी व वीणा बजाती सज्जित सुंदरियां, मुग्ध हिरण और श्रृंगार करती रमणीक नायिकाओं के मनमोहक भित्ति चित्र अंकित है। इसी तरह छतरी के चारों और मेहराबों में हाथियों की विभिन्न मुद्राओं के चित्र भी अति मनोहारी हैं। इनसे नजरें हटाने को मन नहीं करता। वहीं छतरी के मध्य वृहदाकार शिवलिंग भी स्थित है। स्थापत्य कला के नायाब नमूने विश्व प्रसिद्ध चौरासी खम्भों की इस छतरी को 10 वर्ष पूर्व पुरातत्व विभाग ने सहारा दिया। उसके बाद पुरातत्व विभाग ने छतरी के क्षतिग्रस्त भित्ति चित्रों की मरम्मत करवाकर इस अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया। अब छतरी को देखने के लिये शुल्क निर्धारित कर दिए गए है।