केस-1 : बाणगंगा का ९ वर्ष बालक ऑक्यूपेशनल थेरेपी के लिए रोज आता है। पहले हाथ-पैर काम नहीं करते थे, किसी वस्तु को उठाने में पकड़ नहीं बनती थी। अब चीजों को पकडऩे लगा है। खड़े रहने व चलने की स्थिति में भी सुधार है। पिता शैलेश सोलंकी ने बताया, छह माह पहले दिमागी बुखार से यह स्थिति हो गई थी।
केस-2: तीन इमली निवासी 5 वर्षीय बालक का माता-पिता के साथ बाइक पर जाते समय स्टार चौराहे के पास एक्सीडेंट हो गया था। उसके एक हाथ में गंभीर चोट आई। ऑक्यूपेशनल थेरेपी से राहत मिल रही है। मौसी रवीना परमार ने बताया, अब स्थिति में सुधार है। बच्चे को रोज अस्पताल लेकर आते हैं।
इन बीमारियों में बच्चे पा रहे उपचार: ऑटिज्म, एडीएचडी, सेरेबल पाल्सी, डाउन ङ्क्षसड्रोम, डेवलपमेंट डिले, मिर्गी के दौरे आना, टोर्टीकॉलीस, बोलने सुनने या देखने में परेशानी आदि।
मोबाइल से बच्चों के ध्यान में आ रही कमी
ऑक्यूपेशलन थेरेपी के लिए ऐसे बच्चे भी पहुंच रहे हैं जो अधिक मोबाइल या टीवी देखते हैं। इनसे उनके ध्यान लगाने, एक काम पर फोकस करने आदि की दिक्कत आती है। इसे ऑटिज्म कहा जाता है। इसमें पांच से 8 साल के ऐसे बच्चे भी पहुंच रहे हैं जो मोबाइल की लत से ग्रस्त हैं। इन्हें भी यहां पर व्यायाम कराए जा रहे हैं।
कई प्रकार के शारीरिक व मानसिक रोग के इलाज में ऑक्यूपेशनल थेरेपी दी जा रही है। इसमें बच्चों के लिए नया आधुनिक वार्ड बनाया है, जहां उन्हें अलग-अलग तरह के व्यायाम कराए जा रहे हैं।
-डॉ. गौतम सुरागे, ऑक्यूपेशनल थेरेपी विभाग प्रभारी
ऑक्यूपेशनल थेरेपी से बच्चे ही नहीं व्यस्क व बुजुर्ग भी इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। बीमारी के साथ एक्सीडेंट में मांसपेशियों के ङ्क्षखचाव या अन्य कारणों से हो रही परेशानी से भी लोग व्यायाम से राहत पा रहे हैं।
-डॉ. मनीष गोयल, प्रभारी फिजियोथेरेपी विभाग, एमवायएच