श्वेतांबर जैन समाज के पद्मविभूषण आचार्य रत्नसुंदर सूरीश्वर एवं दिगंबर जैन समाज के मुनि प्रसन्नसागर एक-दूसरे से आत्मीयता से मिले और कहा, दिगंबर-श्वेतांबर और तेरापंथी आदि एक ही वृक्ष की विभिन्न शाखाएं हैं। सभी एक ही वृक्ष से जुड़े होने से सबकी जड़़े भी एक ही हैं। अवसर और समय आया तो हम दोनों एक साथ चातुर्मास के लिए भी तैयार हैं। मुनि प्रसन्नसागर ने अपने अनुष्ठान में राष्ट्रसंत रत्नसुंदर को विशेष रूप से आमंत्रित किया था। इसे स्वीकार कर वे साधु-साध्वी भगवंतों सहित पहुंचे। समाज बंधुओं द्वारा महावीर स्वामी एवं जिनशासन के जयघोष के बीच दोनों संतों का आत्मीय मिलन हुआ।
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स्कूली बसों में करना होगा इन नियमों का पालन नहीं तो हो जाएगी जब्त इस भावपूर्ण प्रसंग के साक्षी बने समाज बंधुओं की आंखें नम हो गईं। तीनों जैन समाज के लगभग सभी वरिष्ठ पदाधिकारी उपस्थित थे। प्रारंभ में श्वेतांबर जैन समाज के कल्पक गांधी, आशीष शाह, देवाशीष कोठारी तथा दिगंबर जैन समाज के जैनेश झांझरी, डॉ संजय जैन, विमल सोगानी, सुरेंद्र जैन बाकलीवाल आदि ने समाजबंधुओं एवं आचार्यों की अगवानी की। सांसद शंकर लालवानी एवं विधायक रमेश मेंदोला ने भी आचार्यद्वय से शुभाशीष प्राप्त किए।
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पत्नी के अकाउंट में मनी ट्रांसफर के नाम पर ऐसे लगाता था चूना सुनना नहीं, चुनना महत्वपूर्ण मुनि प्रसन्नसागर ने कहा कि सुनना नहीं, चुनना महत्वपूर्ण है। हम सर्वश्रेष्ठ कुल में जन्मे हैं, तो हमारा आचरण भी सर्वश्रेष्ठ होना चाहिए। निम्नकोटि का आचरण और व्यवहार कुल की मर्यादा को कलंकित बना देता है।
पाप और संताप समाप्त होंगे गुरु चरण में आचार्य रत्नसुंदर ने कहा, पाप-ताप और संताप गुरु के चरणों में बैठने से समाप्त हो जाते हैं। जीवन में लाइन ऑफ कंट्रोल निर्धारित कर लें और भाषा, स्वतंत्रता, जरूरतों व भावनाओं पर नियंत्रण कर लें तो जीवन धन्य बन जाएगा।