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क्रेड़ाई राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के बोर्ड सदस्य रोहित राजमोदी और कोषाध्यक्ष प्रशांत सोलोमन ने बताया कि इस कानून की धारा सात के तहत मात्र एक उपभोक्ता के एनसीएलटी में जाने से सिर्फ उसी की सुनवाई होती है और 15 दिनों की अवधि मेें बिना किसी सबूत के उसके केस को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया जाता है और फिर कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है।
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उन्होंने कहा कि एनसीएलटी सिर्फ एक उपभोक्ता की शिकायत पर सुनवाई कर कंपनी को दिवालिया घोषित कर कंपनी का स्वामित्व एक अंतरिम संकल्प पेशेवर ( आरपी ) को सौंप देती है और वही तय करता है कि कंपनी का अगला मालिक कौन होगा। यह बिल्कुल गलत है और इससे अन्य उपभोक्ताओं के हित भी प्रभावित होते हैं।
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उन्होंने सरकार से मांग की है कि जब रेरा कानून प्रभावी हैं तो रेरा को यह अधिकार दिया जाए जिससे वह यह तय कर सके कि कौन सा केेस एनसीएलटी में जाने योग्य है। इस कानून में यह भी कहा गया था कि अगर कोई बिल्डर्स अपने प्रोजेक्ट में कोई बदलाव करता है तो उसे दो तिहाई ग्राहकों की मंजूरी लेनी अनिवार्य है।
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इसी के आधार पर इन्होंने कहा है कि जब प्रोजेक्ट में कोई बदलाव के लिए दो तिहाई की शर्त है तो एनसीएलटी में भी किसी केस के जाने में दो तिहाई उपभोक्ताओं की मंजूरी को आवश्यक माना जाए। इसके अलावा किसी भी उपभोक्ता की शिकायत को पहले रेरा के पास ही भेजा जाना अनिवार्य किया जाना चाहिए।