– नियुक्ति दिनांक 2023 तक वेतन भत्तों की जानकारी।
– परिवार के सदस्यों की जानकारी।
– नौकरी के पूर्व और बाद में चल-अचल संपत्ति की जानकारी।
– वर्षवार प्रस्तुत किए गए आयकर विवरण की जानकारी।
– स्वयं व परिवार के सदस्यों के बैंक खातों की जानकारी।
– किसी भी वाहन, मकान, प्लाट, चल-अचल संपत्ति के क्रय करने के लिए विभाग से मांगी गई अनुमति की जानकारी।
– उपरोक्त के विरुद्ध विभागीय व प्रचलित जांच।
– आवासीय योजनाओं और प्रधानमंत्री योजना के बीएलसी घटक में नगर निगम के इंजीनियर्स पर गंभीर आरोप लग चुके हैं। पूर्व में पत्रिका द्वारा चलाए गए अभियान के बाद निगम के लगभग सात-आठ इंजीनियर्स पर वेतन वृद्धि रोकने की कार्रवाई भी की गई थी।
– राजीव नगर कॉलोनी के मामले में करोड़ों का भ्रष्टाचार होने की बात सामने आई थी। मामला विधानसभा के पटल तक पहुंचा था, जिसमें इंजीनियर ने करोड़ों/अरबों रुपए का फर्जीवाड़ा किया, लेकिन जांच आज भी ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है।
– कांजी हाउस, चरनोई की लगभग पांच सौ करोड़ रुपए कीमत की जमीनों में भी इंजीनियर्स की भूमिका संदिग्ध रही है। मप्र हाइकोर्ट के निर्देश के बाद भी वर्णी कॉलोनी स्थित लगभग तीन सौ करोड़ की चरनोई भूमि से निगम प्रशासन ने अतिक्रमण नहीं हटाया। जिसमें इंजीनियर्स की भूमिका संदेह के घेरे में रही।
– शहर में सड़क निर्माण के दौरान अद्भुत अवधारणा रखने वाले इंजीनियर्स हमेशा ही लोगोंं के निशाने पर रहे हैं। सड़क और नाली का निर्माण हमेशा ही शहर के वार्डों में अलग-अलग किया गया है। जिसके एवज में बड़ी राशि अफसरों व नेताओं ने हजम की है। जिनके माध्यम निगम के इंजीनियर्स रहे हैं।
नगर निगम के इंजीनियर्स की कारिस्तानी ऐसी है कि इनका हर मामले में दखल होता है। पूर्व में कलेक्टर ने इनसे गुलाब बाबा मंदिर के सामने वाली सड़क निर्माण, वर्ष 2018 के होर्डिंग्स के ठेका संबंधी नस्ती, छत्रसाल नगर की दुकानों के आंवटन संबंधी नस्ती, बाजार बैठकी संबंधी जानकारी, अटल पार्क की पर्यावरण वानिकी जमीन आवंटन संबंधी नस्ती सहित छह बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी, लेकिन प्रशासनिक व राजनीतिक दबाव के चलते भ्रष्टाचार का यह मामला दबा दिया गया।
निगम से सेवानिवृत्त हो चुके इंजीनियर लखनलाल साहू पर जब लोकायुक्त संगठन ने दबिश दी थी तो उनके पास आय से अधिक संपत्ति मिली थी। इसके बाद लोकायुक्त संगठन लगभग पांच-छह साल तक निगम प्रशासन से प्रकरण चलाने के लिए अभियोजन स्वीकृति मांगता रहा, लेकिन तत्कालीन महापौर अभय दरे की परिषद ने यह कहते हुए सहमति नहीं दी कि उनकी संपत्ति आय के मुताबिक सही है। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि लोकायुक्त संगठन इस मामले में वरिष्ठ अधिकारियों से पत्राचार तो करता रहा, लेकिन कार्रवाई को अंजाम तक नहीं पहुंचा पाया।
एक शिकायत के आधार पर निगम से उनके इंजीनियर्स व परिजनों की संपत्ति, वेतन सहित अन्य जानकारी मांगी थी जो मिल गई है। शिकायत पर जांच कर रहे हैं, मामले में इससे ज्यादा जानकारी नहीं दे सकते।
उमा नवल आर्य, उप पुलिस अधीक्षक, इओडब्ल्यू