बता दें कि पिछले हफ्ते ही प्रदेश सरकार ने ओबीसी आरक्षण को लेकर उच्च स्तरीय बैठक की। इस बैठक में ही सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला लिया गया। लेकिन सरकार अभी तैयारी ही कर रही थी कि सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दायर कर दी गई।
यहां यह भी बता दें कि 2019 से लगातार यह मामला मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में लंबित है। पिछली सुनवाई में भी हाईकोर्ट ने प्रदेश में बढ़े हुए 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण पर पूर्व में दिए गए रोक को बरकरार रखा। हाईकोर्ट, सिर्फ 14 फीसदी ओबीसी आरक्षण ही प्रदेश में लागू रहने की स्वीकृति दे रहा है।
ये भी पढें- मध्य प्रदेश में OBC reservation मसले पर शिवराज सरकार की नई रणनीति इसके पूर्व सरकार अपने जवाब से स्पष्ट कर चुकी है कि वह मध्य प्रदेश में ओबीसी को आबादी के लिहाज से आरक्षण देना चाहती है। तर्क है कि प्रदेश में ओबीसी वर्ग की आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है, लिहाजा उन्हें बढ़ा हुआ 27 फीसदी आरक्षण दिया जाना चाहिए। इसके विपरीत याचिकाकर्ता के वकील की अलग ही दलील है। उनका तर्क है कि सुप्रीम कोर्ट का इंदिरा साहनी का न्याय दृष्टांत हो, या मराठा रिजर्वेशन पर दिया गया फैसला, दोनों ही फैसलों से स्पष्ट है कि किसी भी लिहाज से मध्य प्रदेश में एससी/एसटी/ओबीसी को मिलाकर 50 फीसद से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता। ऐसे में अगर 27 फीसद आरक्षण मध्य प्रदेश में लागू किया जाता है तो सूबे में आरक्षण का प्रतिशत 63 फीसद हो जाएगा।
हाल ही में हुई सुनवाई के दौरान प्रदेश में ओबीसी वर्ग को बढ़ा हुआ यानि 27 फीसदी आरक्षण देने पर हाई कोर्ट ने रोक बरकरार रखी है। जबलपुर हाईकोर्ट ने साफ किया है कि फिलहाल ओबीसी वर्ग को पहले की तरह 14 फीसदी आरक्षण ही दिया जा सकेगा। इस केस की अगली सुनवाई अब 10 अगस्त को होनी है। सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि प्रदेश में कोराना की तीसरी लहर को देखते हुए डॉक्टर्स की नियुक्ति करना जरूरी है। इस पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वो मैरिट लिस्ट तो 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण के हिसाब से बना सकती है लेकिन डॉक्टर्स की नियुक्ति में 14 फीसदी ओबीसी आरक्षण ही दिया जा सकेगा। हाईकोर्ट ने मामले पर याचिकाकर्ताओं सहित राज्य सरकार से लिखित में अपनी बहस के बिंदु पेश करने के आदेश दिए हैं।