जैसा गं्रथों में वर्णन, वैसी ही गुफा
नर्मदा परिक्रमा कर रहे दिग्विजय अपनी यात्रा के दौरान सोमवार को साकल ग्राम पहुंचे थे। वहां उन्होंने ने पत्रकारों से लंबी बातचीत की। इस दौरान दिग्विजय ने ग्रंथों और कई इतिहासकारों की किताबों का हवाला दिया। और दावा किया कि नर्मदा के उस पर साकल ग्राम के सघन वन में एक गुफा है। यह गुफा बिल्कुल वैसे ही दिखाई देती है जैसा कि प्राचीन गं्रथ में आदि शंकराचार्य की गुफा के संबंध में वर्णन है। उन्होंने बताया कि नरसिंहपुर गजेटियर में भी पाया गया है कि यह गुफा आदि शंकराचार्य के गुरू गोविंदभगवत्पाद की थी।
गुरू की कर रहे है अवहेलना
दिग्विजय सिंह ने गं्रथों का हवाला देते हुए दावा किया कि साकल ग्राम स्थित गुफा में ही आदि शंकराचार्य ने गोविंदभगवत्पाद से दीक्षा ग्रहण की है। उन्होंने कहा कि गोविंदनाथवन, ओंकारेश्वर नहीं हो सकता है। क्योंकि ओंकारेश्वर विंध्याचल से हटकर है। दो नदियों कावेरी और नर्मदा के बीच में है। साथ ही वहां ज्योतिर्लिंग है। सरकार के निर्णय पर सवाल उठाते हुए दिग्विजय ने कहा कि महान गुरू को छोड़कर उनके शिष्य की प्रतिमा किसी अन्यत्र जगह लगाकर उसे गोविंदनाथ की गुफा के रुप में राजकीय प्रचारतंत्र से ख्यापित कराना सरकार के द्वारा प्रमाणिक इतिहास को पलटने जैसा है। विकृत करने जैसा है। शिष्य की प्रतिमा स्थापित करके गुरू की अवहेलना की जा रही है।
…तो कालडी से शुरू करते यात्रा
कांग्रेस नेता ने कहा कि यदि आदि शंकराचार्य के नाम पर यात्रा होनी थी तो तो यह उनके जन्मस्थल कालडी से प्रारंभ होकर जहां-जहां आदिगुरू शंकराचार्य गए थे वहां जाकर उनके सिद्धांतों का प्रचार होना चाहिए था और केदार में उसका समापन होना चाहिए था। आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चारों पीठों के शंकराचार्यों से आशीर्वाद और सहयोग लेना चाहिए था। यह कार्य दलीय राजनीति से हटकर राष्ट्रभक्ति के लिए होना चाहिए था।
गुरूदेव के संकल्प में करेंगे मदद
नर्मदा परिक्रमा पर निकले दिग्विजय ने साकल के सघन की गुफा में कहा कि उनके गुरूदेव ने यहां पर गोविंदभगवत्पादचार्य से दीक्षा लेते हुए आद्यशंकराचार्य की मूर्ति मंदिर में स्थापित करने के लिए भूमिपूजन किया है। इस कार्य में वे भी सहयोग करेंगे। उनका दावा है कि इसी गुफा में आदि शंकराचार्य ने तीन वर्ष तक योगी गोविंदभगवत्पाद के सानिध्य में रहकर तीन वर्ष तक दीक्षा ग्रहण की है।