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जबलपुर

अपराजेय कलम के योद्धा: गजानन माधव मुक्तिबोध’ – यदि नहीं लौटाईं ये चीजें तो बन जाएंगे ब्रह्मराक्षस… देखें वीडियो

बन जाएंगे ब्रह्मराक्षस…

जबलपुरSep 12, 2018 / 09:40 am

deepak deewan

patrika programme on Gajanan Madhav Muktibodh in jabalpur

patrika programme on Gajanan Madhav Muktibodh in jabalpur

जबलपुर.
शोषक वर्गों के प्रति न रोकें कभी कलम के तीव्र क्रोध को, अंतिम क्षण तक जारी रखें मानवीय मूल्यार्थ शोध को,
परंपरा से पृथक चांद का मुंह टेढ़ा देखा जिनने, संस्कारधानी के श्रद्धा सुमन समर्पित मुक्तिबोध को।
इन्हीं विचारों के साथ महान साहित्यकार गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ का मंगलवार को पुण्य स्मरण किया गया। पत्रिका और श्रीजानकीरमण महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में ‘अपराजेय कलम के योद्धा: गजानन माधव मुक्तिबोध’ स्मृति शेष का आयोजन किया गया। ओ मेरे आदर्शवादी मन… ओ मेरे सिद्धांतवादी मन, अब तक क्या किया जीवन क्या जिया… इन पंक्तियों को नृत्य-नाटकीय अंदाज में प्रस्तुत किया गया।

समाज को लौटाना पड़ेगा धरोहर
पत्रिका के स्थानीय संपादक गोविंद ठाकरे ने मुक्तिबोध के साहित्य, उनके जीवन दर्शन से जुड़े पहलुओं पर विचार रखते हुए कहा कि पार्टनर, पॉलिटिक्स साफ करो- यह उनका तकियाकलाम था। वे अपने समय में जोखिम उठाते थे, तभी इतनी बड़ी अभिव्यक्ति कर पाते थे। उनकी रचना ‘ब्रह्मराक्षस’ का मकसद यही था कि जो चीजें आपने समाज से, पर्यावरण, माता-पिता से, जन्मभूमि, कर्मभूमि से मिली है, उसे समाज को वापस दीजिए, वरना पौराणिक आख्यानों के अनुसार आप ब्रह्मराक्षस हो जाएंगे। इसके साथ ही उन्होंने पत्रिका के चेंजमेकर अभियान तथा अन्य सामाजिक सरोकारों से अवगत करवाया। व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के भांजे प्रकाश दुबे भी कार्यक्रम का हिस्सा बने। उन्होंने बताया कि मुक्तिबोध और हरिशंकर अच्छे मित्र थे। मुक्तिबोध ने दो वर्ष के जबलपुर प्रवास के दौरान बहुत सा समय परसाईजी के साथ ही बिताया था। प्रकाश ने बताया कि मुक्तिबोध बौद्धिक होने के साथ-साथ भावुक थे, इसलिए उनकी कविताओं को समझने के लिए उनकी प्रकृति को समझना पड़ेगा।

एक साहित्यकार ही दूसरे साहित्यकार खींचता है का पैर
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार राजेंद्र ऋषि ने कहा कि मुक्तिबोध ने प्रतीकों, प्रमाणों को बदलकर नई उपमाएं देने का श्रेय पाया है। चांद का मुंह टेढ़ा है, इसका उदाहरण है। मुख्य वक्ता अभिमन्यू जैन ने अपनी बात पंक्तियों के माध्यम से रखी। कहा, ‘ये कारवां मंजिल पर पहुंचता जरूर, गर दुश्मन न होते कारवां के कारवां वाले…’। मुक्तिबोध को वास्तव में जो सम्मान मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला, क्योंकि एक साहित्यकार ही दूसरे साहित्यकार का पैर खींचता है, विरोध करता है। जरूरी है कि साहित्य को साहित्य के नजरिए से देखें तो ये खींचतान बंद हो जाएगी।

पूरे हिंदुस्तान के साहित्यकारों से थी मुक्तिबोध की मित्रता
प्रभात दुबे ने अपने विचार रखते हुए कहा कि मुक्तिबोध की मित्रता पर बात रखी और कहा कि पुराने और नए साहित्यकारों की मित्रता में भी बदलाव आया है। मुक्तिबोध के मित्र पूरे हिंदुस्तान के साहित्यकारों से भी थी, लेकिन वर्तमान साहित्यकारों की मित्रता सीमित हो गई है। कार्यक्रम में अतिथियों को शबरी दोना पौधा भी सौंपा गया। आभार प्रदर्शन प्राचार्य डॉ. अभिजातकृष्ण त्रिपाठी, संचालन डॉ. आनंद सिंह राणा ने किया। कार्यक्रम में मप्र आंचलिक साहित्यकार परिषद्, साहित्य सहोदर, अनेकांत, जागरण, गुंजन कला सदन, समवेत स्वर संस्थाएं भी शामिल हुईं। नाटक की प्रस्तुति नाट्य लोक संस्था के कलाकार संजय गर्ग, दविंदर सिंह ग्रोवर और पराग तेलंग ने दी।
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