जबलपुर। प्रदेश में ऊर्जा की पहचान बन चुका रामपुर की पहाड़ी पर स्थित शक्ति भवन सिर्फ बिजली क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि वास्तुकला में भी नायाब नमूना है। यह इमारत चट्टानों को तोड़े बिना ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी पर सलीके से बनाई गई है। बिना लिफ्ट की सहायता से एक ब्लॉक में प्रवेश कर 15 ब्लॉक तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।
हर ब्लॉक को इंटर कनेक्ट किया गया है। हर कोने पर प्राकृतिक रोशनी का एेसा इंतजाम कि बिजली न होने के बाद भी कमरे रोशन रहते हैं। इसी खासियत की वजह से शक्ति भवन को एशिया की बेस्ट इमारत से भी नवाजा जा चुका है।
यह भवन एक सीख देता है कि किस तरह प्राकृतिक धरोहर से छेड़छाड़ किए बिना निर्माण करना है। इमारत और यहां प्रकृति द्वारा उड़ेले गए सौंदर्य को निहारने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं। तालाब में पड़ी जलपरी तो बच्चों को आकर्षण में बांध लेती है।
वास्तु का अनुपम उदाहरण
स्मार्ट सिटी की ओर बढ़ते जबलपुर को इसी तरह के स्मार्ट निर्माण की जरूरत है। आज के आर्किटेक्ट को सलीके से भवनों को आकार देने की आवश्यकता है। वास्तु के इस अनुपम उदाहरण का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 17 करोड़ रुपए की लागत से बनी यह इकलौती सरकारी इमारत आज 26 साल बाद भी पूरी तरह जवान है। इस भवन में सफाई भी एेसी रहती है कि बड़े सरकारी दफ्तर या निजी अस्पताल तक फेल हो जाएं। भविष्य में शक्ति भवन स्मार्ट सिटी में चार चांद लगाएगा।
आकार लेने में लगे सात साल
शक्ति भवन को तैयार करने में सात साल लगे थे। 18 दिसंबर 1981 में निर्माण की आधारशिला रखी गई। तारापुर एंड कंपनी के दोशी एंड भल्ला आर्किटेक्ट ने इमारत को डिजाइन किया। रामपुर की ढलान वाली पहाड़ी होने के कारण चट्टानों, वृक्षों एवं पहाड़ों को बिना तोड़े निर्माण कराना चुनौती था। पहाड़ी के अनुसार ही शक्ति भवन के हिस्सों का निर्माण किया गया। निचले हिस्से में बेसमेंट बनाया गया तो वहीं ऊपर के हिस्से में इमारत खड़ी की गई। 43,500 वर्गमीटर में भवन का निर्माण किया गया।
वर्ष 1989 में अस्तित्व में आया
19 अगस्त 1989 को शक्ति भवन अस्तित्व में आया। उद्घाटन तत्कालीन केंद्रीय ऊर्जा मंत्री बसंत साठे ने किया। उस समय प्रदेश के मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा थे, तो वहीं चेयरमैन टीएस सेतुरतनम थे। इन्होंने भवन को अद्भुत करार दिया था। उस समय बिजली कंपनी का विभाजन नहीं हुआ था और यह विद्युत मंडल कहलाता था। मप्र से लेकर छत्तीसगढ़ तक यहीं से पावर, चलता था। वर्ष 2002 से कंपनीकरण की शुरुआत हुई और मंडल कंपनियों में बंट गया।
4673 मेगावाट तक थे सीमित
उस दौर में प्रदेश में चार हजार 673 मेगावाट बिजली उत्पादन होता था। उन्नत तकनीक एवं पावर संयत्रों के विस्तार के बाद आज शक्ति भवन ने उत्पादन उपलब्धता में बढ़ोतरी कर 15 हजार मेगावाट से ज्यादा बिजली की उपलब्धता हासिल कर ली। शक्ति भवन की ऊर्जा शक्ति प्रदेश से बाहर निकलकर भी अब पहचान बनाने लगी है। बिजली कंपनी 17 हजार मेगावाट उत्पादन करने में जुटी है।
लम्बे समय तक याद रखा जाएगा रिकार्ड
बिजली की मांग एवं सप्लाई के नित नए रिकॉर्ड के लिए दिसंबर 2015 लंबे समय तक याद रखा जाएगा। सुबह 9 बजे से प्रदेश में बिजली की मांग 10 हजार 702 मेगावाट के शीर्ष स्तर पर पहुंच रही है। यह प्रदेश के अब तक के इतिहास में बिजली की मांग का शीर्ष स्तर है। ठंड और फसलों की सिंचाई के कारण यह मांग अभी तक बरकरार है।
बिना छेड़छाड निर्माण
प्राकृतिक परिवेश में छेड़छाड किए बिना शक्ति भवन का निर्माण किया गया है। वास्तुकला का यह नायाब उदाहरण है। अंतिम ब्लॉक तक पैदल ही पहुंचा जा सकता है।
– राकेश पाठक, सीपीआरओ, मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी