scriptजानिए बस्तर में ऐसा क्या खास होता है जिसकी वजह से सिर्फ यहां नहीं किया जाता रावण दहन | Ravana Dahan does not happen in Bastar, Bastar Dussehra in jagdalpur | Patrika News
जगदलपुर

जानिए बस्तर में ऐसा क्या खास होता है जिसकी वजह से सिर्फ यहां नहीं किया जाता रावण दहन

बस्तर का ये पर्व इसलिए भी अूनठा है क्योंकि बस्तर ही एकमात्र जगह है जहां दशहरे पर रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता।

जगदलपुरSep 20, 2019 / 01:46 pm

Badal Dewangan

जानिए बस्तर में ऐसा क्या खास होता है जिसकी वजह से सिर्फ यहां नहीं किया जाता रावण दहन

जानिए बस्तर में ऐसा क्या खास होता है जिसकी वजह से सिर्फ यहां नहीं किया जाता रावण दहन

जगदलपुर. इस पर्व के बारे में जानकर आप हैरान रह जाएंगे। यह कोई आम पर्व नहीं है। यह विश्व का सबसे लंबी अवधि तक चलने वाला पर्व है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में मनाया जाने वाला दशहरा पूरे 75 दिन तक मनाया जाता है। बस्तर के लोग 600 साल से यह पर्व मनाते आ रहे हैं। यहां मनाया जाने वाला दशहरा पर्व इसलिए भी अूनठा है क्योंकि बस्तर ही एकमात्र जगह है जहां दशहरे पर रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता। यह पर्व बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी की आराधना से जुड़ा हुआ है। यह संगम है बस्तर की संस्कृति, राजशाही, सभ्यता और आदिवासी के आपसी सद्भावना का।

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बस्तर दशहरा का विकास
आदिवासियों की अभूतपूर्व भागीदारी की वजह से भी इस पर्व को जाना जाता है। आदिवासियों ने प्रारंभिक काल से ही बस्तर के राजाओं को हर तरह से सहयोग दिया। इसका परिणाम यह निकला, बस्तर दशहरा का विकास एक ऐसी परंपरा के रूप में हुआ जिस पर आदिवासी समुदाय ही नहीं समस्त छत्तीसगढवासी गर्व करते हैं। बस्तर राज्य के समय परगनिया, मांझी, मुकद्दम, कोटवार व ग्रामीण दशहरे की व्यवस्था में समय से पहले ही जुट जाया करते थे। आज यह व्यवस्था शासन-प्रशासन करता है लेकिन पर्व का मूलस्वरुप आज भी वैसा ही बना हुआ है।

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राजा पुरूषोत्तम देव ने शुरू किया रथ चालन
एक अनश्रुति के अनुसार बस्तर के चालुक्य नरेश भैराजदेव के पुत्र पुरुषोत्तम देव ने जगन्नाथपुरी तक पदयात्रा कर मंदिर में एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ तथा स्वर्ण भूषण तथा सामग्री भेंट में अर्पित की थी। इस पर पुजारी को स्वप्न आया था। स्वप्न में श्री जगन्नाथ ने राजा पुरुषोत्तम देव को रथपति घोषित करने के लिए पुजारी को आदेश दिया था। कहते हैं, राजा पुरुषोत्तम देव जब पुरी धाम से बस्तर लौटे तभी से गोंचा और दशहरा पर्व पर रथ चलाने की प्रथा चल पड़ी। राजा पुरुषोत्तम देव ने फागुन कृष्ण चार दिन सोमवार संवत 1465 को 25 वर्ष की आयु में शासन की बागडोर संभाली थी।

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