परनामी की संगठन में पकड़ कमज़ोर पड़ने लगी थी। वे नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ बेहतर तालमेल के साथ काम नहीं कर पा रहे थे। इस तरह की शिकायतों पर केंद्रीय नेतृत्व की टीम भी लगातार नज़र बनाये हुए थी।
राजस्थान में तीन सीटों पर हुए उपचुनाव में मिली करारी शिकस्त से प्रदेश बीजेपी को किरकिरी का सामना करना पड़ा था। इसके बाद पार्टी को मिली हार पर राज्य से लेकर केंद्रीय नेतृत्व तक ने हार के कारणों की समीक्षा की थी। उपचुनाव के दौरान संगठन की कमान परनामी के पास थी लिहाज़ा हार का ठीकरा भी उन्हीं के सर फूटना तय माना जा रहा था।
अपने कार्यकाल के दौरान हालांकि परनामी ज़्यादा विवादों में नहीं फंसे लेकिन जिस एक विवाद में फंसे वही उनपर भारी पड़ गया। मामला अतिक्रमणों को संरक्षण देने से जुड़ा था जिसने परनामी के साथ ही पूरी पार्टी की बहुत किरकिरी की। उनके विवादित बयान से ये मामला इतना ज़्यादा बढ़ गया कि नौबत हाईकोर्ट तक पहुँच गई। इसके बाद परनामी को अपने बयान पर माफ़ी तक मांगनी पड़ गई।
राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं, लिहाज़ा अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी का केंद्रीय संगठन जीत की रणनीति बनाने में लगा हुआ है। सियासी दृष्टिकोण से पार्टी आलाकमान के लिए राजस्थान बेहद महत्वपूर्ण राज्य माना रहा है। लिहाज़ा संगठन इस राज्य में चुनाव जीतने को लेकर हर तरह की कोशिशों में जुटा है। ऐसे में परनामी को हटाकर किसी अन्य को अध्यक्ष बनाना पार्टी की रणनीति के हिस्से के तौर पर देखा जा रहा है।
किसी भी प्रदेश के लिए संगठन का अध्यक्ष पद बेहद महत्वपूर्ण रहता है। सियासी दल इस पद पर कई तरह के राजनीतिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए नियुक्ति करती है। ऐसे में माना ये जा रहा है कि इस साल के अंत में चुनाव को देखते हुए किसी वर्ग विशेष को खुश करने के लिहाज़ से परनामी को बदला जा रहा है।